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भिक्खु - भिक्षु । जो भिंदेह खुहं खलु सो भिक्खु ।
जो क्षुत् कर्म का भेदन करता है, वह भिक्षु कहलाता है। भित्ति - भित्ति । नदितडीतो जवोषहलिया सा भित्ती भण्णति ।
मंगल - मङ्गल । मंग लातीति मंगले अथवा म गालयते भवादिति मंगलं ।
नियुक्तिपंचक
नदी के तट पर पानी के वेगवान् प्रवाह से पड़ी हुई दरार 'भित्ति' कहलाती है।
( दशजिचू. पृ २७५ )
( उनि ३६८ )
जो सांसारिक अपाय को दूर करता है, वह मंगल है ।
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• सम्यग्दर्शनादिमार्गलयनाद्वा मंगलम् ।
मंग अर्थात् कल्याण । जो कल्याण को लाता है, वह मंगल है। जीवन से मा-विघ्न को
दूर करने वाला मंगल है।
( उच्च्. पृ. ४)
• शास्त्रस्य मा गलो भूदिति मंगलं ।
शास्त्र ( की परिसमाप्ति) में कोई विघ्न न हो, वह मंगल है।
• मं संसारिकेभ्यो अपायेभ्यः गलतीति मंगलं ।
( उचू. पृ. ४)
(दशजिचू. पू. २)
सम्यग्दर्शन आदि के मार्ग में लीन करने वाला मंगल है।
( सूचू. १ पृ. २)
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• मंग्यते हितमनेनेति मंगलम् मङ्गयते (अधिगम्यते) साध्यत इत यावत् । अथवा मंग:--- धर्म ला- आदाने मंगं लातीति मंगलम् ।
जिससे हित साधा जाता है अथवा प्राप्त किया जाता है, वह मंगल है। मंग का अर्थ है धर्म, जो धर्म को प्राप्त कराता है, वह मंगल है। ( सूचू. १ पृ. २)
मंजुल - मञ्जुल, मनोरम मणसि लीयते मनोऽनुकूलं वा मंजुलम् ।
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जो मन में समा जाता है, वह मंजुल है। जो मनोनुकूल है, वह मंजुल है। (सूचू. १ पृ. १०६ ) मंद - मन्द । मंदा नाम मुख्यादिभिरपचिता ।
जो बुद्धि आदि से शून्य है, वह मन्द है ।
( उचू. पृ. १७३)
मंदबुद्धि - स्थूलबुद्धि । जस्स बूला बुद्धी सो मंदबुद्धी भण्णइ । जिसकी बुद्धि स्थूल है, वह मंदबुद्धि है।
(उच्. पृ. १७२ ) मंसखल - मांस सुखाने का स्थान मसखलं जत्य मंसा सुक्खाविंति सुक्खस्स वा कहवल्ला कता । जहां मांस सुखाया जाता है तथा सूखे मांस के टुकड़े किए जाते हैं, वह मांसखल हैं। (आचू. पू. ३३५)
मईब - मडम्ब । मबी जस्स अड्डाइज्जेहि गाउएहि णत्थि गामो ।
जिसके चारों ओर ढाई कोस तक कोई गांव नहीं होता, वह मडम्ब कहलाता है। (आनू. पू. २८१) मणविणय – मानसिक विनय । मणविणयो आयरियादिसु अकुसलमणवजणं कुसलमणउदीरणं । आचार्य आदि गुरुजनों के प्रति अमंगलकारी मन (भावना) का निरोध तथा मंगलकारी मन (भावना) की उदीरणा मानसिक विनय है। (दश अचू. पृ. १५)