Book Title: Niryukti Panchak
Author(s): Bhadrabahuswami, Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 752
________________ ६५४ भिक्खु - भिक्षु । जो भिंदेह खुहं खलु सो भिक्खु । जो क्षुत् कर्म का भेदन करता है, वह भिक्षु कहलाता है। भित्ति - भित्ति । नदितडीतो जवोषहलिया सा भित्ती भण्णति । मंगल - मङ्गल । मंग लातीति मंगले अथवा म गालयते भवादिति मंगलं । नियुक्तिपंचक नदी के तट पर पानी के वेगवान् प्रवाह से पड़ी हुई दरार 'भित्ति' कहलाती है। ( दशजिचू. पृ २७५ ) ( उनि ३६८ ) जो सांसारिक अपाय को दूर करता है, वह मंगल है । ० • सम्यग्दर्शनादिमार्गलयनाद्वा मंगलम् । मंग अर्थात् कल्याण । जो कल्याण को लाता है, वह मंगल है। जीवन से मा-विघ्न को दूर करने वाला मंगल है। ( उच्च्. पृ. ४) • शास्त्रस्य मा गलो भूदिति मंगलं । शास्त्र ( की परिसमाप्ति) में कोई विघ्न न हो, वह मंगल है। • मं संसारिकेभ्यो अपायेभ्यः गलतीति मंगलं । ( उचू. पृ. ४) (दशजिचू. पू. २) सम्यग्दर्शन आदि के मार्ग में लीन करने वाला मंगल है। ( सूचू. १ पृ. २) 9 • मंग्यते हितमनेनेति मंगलम् मङ्गयते (अधिगम्यते) साध्यत इत यावत् । अथवा मंग:--- धर्म ला- आदाने मंगं लातीति मंगलम् । जिससे हित साधा जाता है अथवा प्राप्त किया जाता है, वह मंगल है। मंग का अर्थ है धर्म, जो धर्म को प्राप्त कराता है, वह मंगल है। ( सूचू. १ पृ. २) मंजुल - मञ्जुल, मनोरम मणसि लीयते मनोऽनुकूलं वा मंजुलम् । I जो मन में समा जाता है, वह मंजुल है। जो मनोनुकूल है, वह मंजुल है। (सूचू. १ पृ. १०६ ) मंद - मन्द । मंदा नाम मुख्यादिभिरपचिता । जो बुद्धि आदि से शून्य है, वह मन्द है । ( उचू. पृ. १७३) मंदबुद्धि - स्थूलबुद्धि । जस्स बूला बुद्धी सो मंदबुद्धी भण्णइ । जिसकी बुद्धि स्थूल है, वह मंदबुद्धि है। (उच्. पृ. १७२ ) मंसखल - मांस सुखाने का स्थान मसखलं जत्य मंसा सुक्खाविंति सुक्खस्स वा कहवल्ला कता । जहां मांस सुखाया जाता है तथा सूखे मांस के टुकड़े किए जाते हैं, वह मांसखल हैं। (आचू. पू. ३३५) मईब - मडम्ब । मबी जस्स अड्डाइज्जेहि गाउएहि णत्थि गामो । जिसके चारों ओर ढाई कोस तक कोई गांव नहीं होता, वह मडम्ब कहलाता है। (आनू. पू. २८१) मणविणय – मानसिक विनय । मणविणयो आयरियादिसु अकुसलमणवजणं कुसलमणउदीरणं । आचार्य आदि गुरुजनों के प्रति अमंगलकारी मन (भावना) का निरोध तथा मंगलकारी मन (भावना) की उदीरणा मानसिक विनय है। (दश अचू. पृ. १५)

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