Book Title: Niryukti Panchak
Author(s): Bhadrabahuswami, Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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परिशिष्ट-९
उपमा और दृष्टान्त
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दशवैकालिक नियुक्ति जह सीहसहु सीहे पाहण्णुवयारओऽन्नत्य। कुसुमे सभावपुप्फे, आहारंति भमरा जह तहेव। भत्तं सभावसिद्धं, समणसुविहिता गवसंति ॥ भमरोव्च अवहवित्तीहिं। उरग-गिरि-जलण-सागर-नभतल तरुगणसमो य जो होई। भमर-मिग-धरणि-जलरुह, रवि-पवणसमो य सो समणो॥ विस-तिणिस-वात-वंजुल, कणियारुप्पलसमेण समणेणं । भमरुंदर-मड-कुक्कुड, अदागसमेण भावतव्यं । फरिसेण जहा वाऊ ........... पत्थेण व कुडवेण व जह कोइ मिणेज सम्बधनाई। सारही इव तुरंगेहिं। अहवा वि दुप्पणिहिंदियो उ मजार-बगसमो होइ। सो बालतवस्सी वित्र गयोहाणपरिस्समं कुणति। मनामि उच्छुफुल्लं व निप्फलं तस्स सामण्णं । निसिटुंगो व कंटइल्ले जह पडतो। सुक्कतिणाई जहा अग्गी। धणेणं जच्चसुबण्णगं व। जध नाम आतुरस्सिह... । उत्तराध्ययन नियुक्ति दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवेंति। जह धातू कणगादी, सभावसंजोगसंजुया होति । इय संततिकम्मेणं, अणाइसंजुत्तओ जीवो ॥ चोल्लग पासग धन्ने, जूए रयणे य सुमिण चक्के या चम्म जुगे परमाणु, दस दिटुंता मणुयलंभे ॥ पुट्ठो जहा अबद्धो, कंचुइणं कंचुओ समनेति । एवं पुट्ठमबझे, जीवो कम्म समन्नेति ॥
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