Book Title: Niryukti Panchak
Author(s): Bhadrabahuswami, Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 770
________________ नियुक्तिपंचक (२४१) (२६२/१) (३०१) (३९५) (३९६) (४१२) (४३१) (४८७) (८५) ओरब्भे य कागिणी अंबए य ववहार सागरे चेव। पंचेते दिटुंता........ बुड्दिं च हाणिं च ससीव दर्दू ,पूरावरेगं च महानईणं । जह तुब्भे तह अम्हे, तुम्भं वि य होहिहा जहा अम्हे। अप्पाहेइ पड़तं, पंडुरपत्तं किसलयाणं ॥ जलबुब्बुयसन्निभे य माणुस्से। किंपागफलोवमनिभेसु ......३ सीहत्ता निक्लमिउं, सीहत्ता चेव विहरसू। अमरवणं सरिसरूवं। दोगुंदगो व देवो। दंसमसगस्समाणा, जलूक-विच्छुगसमा । आचारांग नियुक्ति अट्ठी जहा सरीरम्मि, अणुगतं चेयणं खरं दिटुं । एवं जीवाणुगयं, पुढविसरोरं खरं होति ॥ जह हस्थिस्स सरीरं, कललावत्थस्स अहुणोववनस्स । होति उदगंडगस्स य, रसुवमा आउजावारण । जह देहपरीणामो,रत्तिं खज्जोयगस्स सा उवमा। जरितस्स य जह उम्हा, एसुवमा तेउजीवाणं ॥ जह सगलसरिसवाणं, सिलेसमिस्साण वत्तिया वट्टी। पत्तेयः जह वा तिलसक्कुलिया, बहूहिं तिलेहिं मेलिया संती। पत्तेय ... । जह देवस्स सरीरं, अंतद्धाणं च अंजणादीसुं । एओवमा आदेसो, वाएऽसंतेऽवि रूवम्मि॥ जह सव्वपायवाणं, भूमीए पतिट्टियाणि मूलाणि । इय कम्मपायवाणं, संसारपइट्ठिया मूला॥ जह सुत्त-मत्त-मुच्छिय,असहीणो पावती बहुं दुक्खं । सीयधरो संजमो भवति सीतो। कमलविसालनेत्तं। जह खलु झुसिरं कट्ठ, सुचिरं सुक्कं लहुं डहइ अग्गी। तह खलु खति कर्म, सम्मच्चरणट्टिया 'साह ॥ रपणो जह तिक्ख-सीयला आणा। (११९) (१३१,१३२) (१६७) (१८७) (२१३) (२०७) (२२९) (२३५) (२८७)

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