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परिशिष्ट ७ : परिभाषाएं
वयसंजम-वाक्संयम 1 धयसंजमो णाम अकुसलवइनिरोहो कुसलपाइग्दीरणं वा।। अकुशल वचन का निरोध तथा कुशल वचन की उदीरणा वचन-संयम है।
(दजिचू पृ. २१) पलप-वलय। वलयं णाम एक्कदुवारो गापरिक्खेयो बलयसंवितो वलयं भण्णति । एक द्वार वाला गर्ता का परिक्षेप, जो वलय के आकार का होता है, वह वलय कहलाता
(सूचू १ पृ. ८८) वलायमरण-वलन्मरण। सेजमजोगक्सिण्णा, मरति जे तं वलायमरणं तु।
संयम-योगों से विषण्ण होकर मरना वलन्मरण कहलाता है। (इनि २१०) वसहमरण--वशार्त्तमरण। इंदियविसयवसगता, मरति जे तं वसट्टे तु ।
जो प्राणी इन्द्रिय विषयों के वशवर्ती होकर मृत्यु को प्राप्त करते हैं, उनका मरण वशान मरण कहलाता है।
(उनि २१०) वसट्टि-वशवर्ती । पश्येन्द्रियो वा यः स यशवट्टी गुरूणां वा वशे वर्तते इति वशवर्ती। जिसकी इंद्रियां स्ववश में हों अथवा जो स्वयं गुरु के वश में हो, वह वशवर्ती है।
(सूचू १ पृ. १०७) बसुहा-वसुधा । वसूनि निधत्ते इति वसुधा। जो वसु-रत्नों को धारण करती है, वह वसुधा है।
(उचू पृ. २०९) पाय-यादा पक्षाप्रतिक्षापरिग्रहः पादः ।। पक्ष और प्रतिपक्ष का प्रयोग करना वाद है।
(दचू प. २२) • वादो शाम छल-जाति-निग्रहस्थानवर्जितः। जिसमें छल, जाति और निग्रह-स्थान का कोई अवकाश नहीं होता, वह. वाद है।
(सूचू १ पृ. १३) वायणा-वाचना। सीसस्स अशावर्ण घायणा। शिष्य को पढ़ाना वाचना है।
(दशअचू पृ. १६) वायावीरिय-वाग्वीर्य। वायावीरियं णाम जो भणति ण य करेति । जो कहता है पर करता नहीं. वह केवल वाग्वीर्य है।
(सूचू १ पृ. १०९) पासावास-वर्षावास । परिसासु चत्तारि मासा एगस्थ अच्छतीति वासावासी।
वर्षाकाल में एक स्थान पर चार मास तक रहना वर्षावास कहलाता है। (दचू प. ५१) विकहा-विक्रथा। जो संजतो पमत्तो, रागहोसषसगओ परिकहेइ।
सा उ विकहा पवयणे, पण्णता धीरपुरिसेहि॥ जो संयमी मुनि प्रमाद तथा राग-द्वेष के वशीभूत होकर कथा (धर्मोपदेश) करता है, वह विकथा कहलाती है।
(दशनि १८४) • जहा विणवसीला विसीला णारी एवं विट्ठाकहा विकहा। जैसे नारो का शील विनष्ट हो जाने पर वह विशीला कहलाती है वैसे ही जिस कथा का स्वरूप विनष्ट हो जाता है, वह विकथा है।
(दशअचू पृ. ५८)