________________
परिशिष्ट ७ : परिभाषाएं
६४९
• परिणिध्वुतो णाम रागद्दोसविमुक्को। जो रागद्वेष से विमुक्त है, वह परिनिर्वृत है।
(उचू. पृ. १९३) परियट्टण-परिवर्तना, चितारना। परियट्टणं पुष्यपडितस्स अब्भसणं। पूर्व पठित का अभ्यास करना परिवर्तना है।
(दशअचू. पृ. १६) परियागववत्यषणा-पर्यायव्यवस्थापना। पयज्जापरियातो पज्जोसमणावरिसेहिं गणिज्जति वेण
परियागववत्थवणा भण्णति। प्रव्रज्या पर्याय को पर्युषणा कल्प से गिना जाता है, वह पर्याय व्यवस्थापना कहलाती है।
(दचू.प. ५१) परिवायग-परित्राजक। सव्यसो पार्य परिवज्जयंतो परिवायगो भण्णइ।
__ सर्वथा पाप का वर्जन करने वाला परिव्राजक कहलाता है। (दजियू, पृ. ७३, ७४) पलात्थिया-पर्यस्तिका, पालथी। पर्यस्तिका जानुजंघोपरिवस्त्रवेष्टनात्मिका।
घुटनों और जंघाओं के चारों ओर वस्त्र बांधकर बैठना पर्यस्तिका है। (उशांटी.प. ५४) पवा-प्रपा, प्याऊ। पवा जत्थ पाणितं पिज्जइ।
जहां पानी पिलाया जाता है, वह प्रपा है। पवियवखण-प्रविचक्षण। पविपक्षणा वापार वि परिगाहणसमत्था। कथन मात्र से अर्थ को ग्रहण कराने में समर्थ व्यक्ति प्रविचक्षण कहलाता है।
(दशअचू. पृ. ४८) पवइय-प्रव्रजित । पष्वदओ नाम पापाद्विरतो प्रव्रजितः। जो पाप से विरत है, वह प्रव्रजित कहलाता है।
(दशजिचू. पृ. ७३,) पाओवगमण-प्रायोपगमन । पाओवगमर्ण जे निडिकम्मो पायवो विष जहापडिओ अच्छति । वृक्ष की शाखा की भांति निश्चेष्ट तथा शरीर के प्रति निष्प्रतिकर्म रहना प्रायोपगमन अनशन
__(दशअचू. पृ. १२) पागार-प्राकार । प्रकण मर्यादया कुर्वन्ति तमिति प्राकाराः। जो विशाल तथा परिमाण--मर्यादा से निर्मित होता है, वह प्राकार है।
(उशांटी.प, ३११) पायच्छित्त–प्रायश्चित्त । पापं छिनत्तीति पापच्छित् अथवा यथावस्थितं प्रायश्चित्तं शुभमस्मिन्निति प्रायश्चित्तम्।
जो पाप का छेदन करता है, वह पापच्छित् अर्थात् प्रायश्चित्त है। अथवा जिसमें चित्त प्रायः
यथावस्थित होकर शुद्ध हो जाता है, वह प्रायश्चित्त है। (दशहाटी.प. ३०) पायव-पादप । पादेहिं पिबंति पालिजति वा पायवा। जो पैरों (जड़ों) से पीते हैं अथवा पालित होते हैं, वे पादप (वृक्ष) हैं।
(दशअचू-पृ. ७) पारगामि-पारगामी । जे पुण अप्पसत्यरतिविणियट्टा पसत्थरतिआठट्टा विमुत्ता ते जणा पारगामिणो। जो अप्रशस्त रति से विनिवृत्त और प्रशस्त रति में प्रवृत्त रहते हैं, वे पारगामी हैं।
(आचू.पृ. ५९)