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परिशिष्ट ७: परिभाषाएं
छठमत्यमरण— छद्मस्थमरण । भणपज्जवोहिनाणी, सुयमइनाणी मरंति जे समणा । छठमत्यमरणमेयं... मनः पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी, मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी आदि भ्रमण जिस मरण को प्राप्त होते हैं, वह छद्मस्थमरण है।
(उनि. २१७)
जरा -- बुढ़ापा । णरो जिज्जति जेण सा जरा ।
प्राणी जिससे जर्जरित होता है, वह जरा है।
(आचू. पृ. १०७)
जरा-जरायुज । जराठया णाम जे जरवेट्ठिया जायंति जहा गोमहिसादि । जन्म के समय जो जरायु वेष्टित दशा में उत्पन्न होते हैं, वे जरायुज कहलाते हैं।
( दर्शाजिचू. पू. १३९, १४० ) जाणणापरिण्णा – ज्ञपरिज्ञा । जाणणापरिण्णा णाम जो जं किंचि अत्थं जागइ सा तस्स जाणणापरिण्णा भवति !
(दशजिचू. पू. ११६)
किसी वस्तु को जानना ज्ञपरिज्ञा है । जाला - ज्वाला । उद्दितोपरि अविच्छिन्ना जाला ।
प्रदीप्त अग्नि से संबद्ध या अविच्छिन्न अग्निशिखा ज्वाला हैं । जिइंदिय - जितेन्द्रिय । जिइंदिओ णाम जिताणि सोयाईणि इंदियाणि जेण सो जिईदिओ । जिसने श्रोत्र आदि इन्द्रियों को जीत लिया, वह जितेन्द्रिय कहलाता है ।
जीवत्थिकाय - जीवास्तिकाय जीवत्धिकायो सततमुषयोगधम्मी । जो सतत उपयोगधर्मा होता है, वह जीवास्तिकाय है।
६.४५
( दर्शजिचू- पृ. २८५ )
जिट्ठोग्गह – ज्येष्ठावग्रह । वरिसासु चत्तारि मासा एगखेत्तोग्गहो भवत्ति त्ति जिट्ठोग्गहो । वर्षाकाल में मुनिं चार मास एक ही क्षेत्र में रहते हैं, वह ज्येष्ठावग्रह कहलाता
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( दचू.प. ५१ )
झाण— ध्यान । दढमज्झवसाणं झाणं ।
दृढ अध्यवसाय ध्यान है।
एगरगर्चितानिरोही झा
(दशअनू. पृ. ८९ )
जुद्ध - युद्ध । जुद्धं आयुहादीहि हणाहणी ।
शस्त्रास्त्रों से मरना - मारना युद्ध है।
(दशअनू. पृ. १०२)
जोगबखेम - योगक्षेम । अप्राप्तविशिष्ट धर्मप्राप्तिः प्राप्तस्य च परिपालनं योगक्षेमम् । अप्राप्त विशिष्ट धर्म की प्राप्ति और प्राप्त की रक्षा करना योगक्षेम है । ( उशांटी. प. २८३ ) जोगव -- योगवान् | जोगा वा जस्स वसे वट्टेति स भवति योगवान् ।
जिसके सभी योग प्रवृत्तियां वशवर्ती हैं, वह योगवान् हैं।
( सूचू. १ पृ. ५४,५५)
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( दशअचू. पू. १०)
( दशअचू. पू. १६ )
( दशअचू. पृ. १६)
एकाग्रचिन्तन अथवा विचारों का निरोध ध्यान हैं । टंकण - टंकण । टंकणा णाम म्लेच्छजातयः पार्वतेयाः ते हि पर्वतमाश्रित्य सुमहन्तमवि अस्सबल वा
इत्यिबल या प्रारभन्ते आगलिन्ति ।