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परिशिष्ट ७ : परिभाषाएं
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है।
कल्लाण-कल्याण, मुक्ति। कल्लं-आरोग्गं तं आगेइ कल्लाणं संसारातो विमोक्खण।
कल्य का अर्थ है-आरोग्य। जी आरोग्य या स्वास्थ्य प्रदान करता है वह है कल्याण । कल्याण का अर्थ है-संसार से मुक्त हो जाना।
(दशअचू पृ. ९३) कसायकुसील-कषायकुशील। फसायकुसौलो जस्स पंचसु णाणाइस कसारहिं विराहणा
कमजति सो कसायकुसीलोत्ति। जो ज्ञानादि पांच प्रकार के आकार में कषाय के द्वारा पिता cl:. है, या गोल
(उचू पृ. १४४) कहा-कथा । तव-संजमगुणधारी, जं चरणरया कहेंति सन्भावं।
सयजयजीवहिर्य, सा उ कहा देसिया समए॥ जो ताप, संयम आदि गुणों के धारक चारित्ररत श्रमण संसारस्थ प्राणियों को हितकर तथा
परमार्थ का उपदेश देते हैं, वह कथा (उपदेश) कहलाती है। (दशनि १८३) कागिणी-काकिनी । कागिणी णाम रूवगस्स असीतिमो भागो धीमोवगस्स चतुभागो। रुपए का अस्सीवां भाग तथा विसोपग (एक सिक्का) का चौथा भाग काकिनी है।
(उचू पृ. १६१) काम-काम। उक्कामयंति जीवं धम्मातो तेण ते कामा।
जो धर्म से उत्क्रान्त–दूर करता है, वह काम कहलाता है। • विविक्तवित्रम्भरसो हि कामः। एकान्त में शृंगाररस की बात करना काम है।
(सूचू १ पृ. १०५) • शब्द-रस-रूप-गन्ध-स्पर्शाः मोहोदयाभिभूतैः सत्वैः काम्यन्त इति कामाः। मोह के उदय से अभिभूत व्यक्तियों द्वारा जो इन्द्रियविषय काम्य होते हैं, वे काम कहलाते
(दशहाटी प. ८५) कायसंजम-कायसंयम। कापसजमो नाम आवस्सगाइजोगे मोत्तुं सुसमाहियपाणिपादस्स
कुम्मो इव गुतिदियस्स चिट्ठमाणस्स संजमो भवइ । आवश्यक आदि संयम-योग में की जाने वाली प्रवृत्ति को छोड़कर जो हाथ-पैर से सुसमाहित तथा कूर्म की भांति गुप्तेन्द्रिय होता है, उसके 'क्राय-संयम' होता है।
(दशजिचू पृ. २१) कासव-काश्यप। काशो नाम इक्खु भण्णइ, जम्हा ते इक्टुं पिबति तेन काश्यपा अभिधीयते।
'काश्य का अर्थ है-इक्षु । इक्षु का पान करने वाला काश्यप कहलाता है। (दशजिचू पृ. १३२) कित्ति-कीर्ति । परेहिं मुणसंसणं कित्ती। दूसरों द्वारा किया जाने वाला गुणकोर्तन कीर्ति है।
(दशअचू पृ. २२७) • सर्वदिग्व्यापी साधुवाद: कीर्तिः। सब दिशाओं में व्याप्त साधुवाद कोर्ति है।
(दशहाटो प. २५७) किमिच्छय-किमिच्छक । राया जो जं इच्छति तस्स तं देति एस रायपिडो किमिच्छतो। याचक जो चाहता है, राजा उसको वह देता है--यह राजपिंड किमिच्छक है।
(दशअचू पृ. ६०)