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नियुक्तिपंचक
कीतकड-क्रीतकृत । कीतकह ज किणिकण दिज्जति। जो खरीद क दी जाती है, २ मा जीत है।
दशअचू. पृ. ६०) कुंडमोय--पात्र विशेष । कुंडमोयो नाम हस्थिपदागिती संठियं कुंडमोय।
हाथी के पांव के आकार वाला बर्तन कुंडमोद कहलाता है। (दशजिचू. पृ. २२७) कुसल-कुशल। कुशलो हिताहितप्रवृत्तिनिवृत्तिनिपुणः।
जो अपने हितकारी कार्य में प्रवृत्त तथा अहितकारी कार्य से निवृत्त होने में निपुण होता है, वह कुशल है।
(सृटी. पृ. ८) कुसील-कुशील । कुत्सित शीलं यस्य पञ्चसु प्रत्येकं ज्ञानादिषु सो कुसीलो।
ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप तथा वीर्य--इन पांच प्रकार के आचारों के प्रति स्खलित आचरण वाला कुशील है।
(उचू.पृ. १४४) कोविदया-विचक्षण। कोविदात्मा ज्ञातव्येषु सर्वेषु परिचेष्टितः।।
जिसने सभी ज्ञातव्य तथ्यों का पारायण कर लिया, वह कोधिदात्मा है । (उचू. पृ. २३८) कोहण-क्रोधी। परं च संजलयति दुक्खसमुत्येण रोसेण संजलण इव कोहणो बुच्चति। जो दुःख से उत्पन्न रोष से दूसरों को प्रज्वलित करता है, वह संज्वलन की भांति क्रोधी
___ (दचू.पृ. ३९) खण-क्षण । खणमिति कालः सो य सत्तउस्सासणिस्सास थोयो एस एवं खणो भन्नति ।
'सात उच्छ्वास-नि:श्वास परिमाण काल को क्षण कहा जाता है। (उचू. पृ. २२४) खत्तिय-क्षत्रिय । सुदेण खत्तियाणीए जाओ खत्तिओत्ति भण्णइ ।
शूद्र पुरुष से क्षत्रिय स्त्री में उत्पन्न संतान क्षत्रिय कहलाती है। (आचू. पृ. ६) खमा--क्षमा । कोहोदयस्स निरोहो कातव्यो उदयप्पत्तस्स वा विफलीकरणं एसा खमा। क्रोध के उदय का निरोध तथा उदयप्राप्त क्रोध का विफलीकरण क्षमा है।
(दशअचू.ए. ११) खमावीरिय-क्षमावीर्य। क्षमावीय आवश्यमानोऽपि न क्षुभ्यति।
आक्रोश करने पर भी जो क्षुब्ध नहीं होता, वह क्षमावीर्य है। (सूचू.१ पृ. १६४) खलुक-दुष्ट, अविनीत । जे किर गुरुपहिणीया, सबला असमाहिकारया पाया।
अहिगरणकारगा वा, जिणषयणे ते किर खलुका॥ पिसुणा परोषतापी, भिन्नरहस्सा परं परिभवति।
निम्बय-निस्सील सढा, जिणवयणे ते किर खलुका ।। जो गुरु के प्रत्यनीक, शबल दोष लगाने वाले, असमाधि पैदा करने वाले, पापाचरण करने वाले, कलहकारी, पिशुन, परपीड़ाकारी, गुप्त रहस्यों का उद्घाटन करने वाले, दूसरों का परिभव करने वाले, व्रत और शील से रहित तथा शठ हैं-वे जिनशासन में खलुंक-अविनीत कहे जाते हैं।
(उनि.४८८, ४८९) बवण-कर्मक्षय करने वाला। भव चठप्पगार खमाणो खवणो भण्णइ।
अणं कम्म भण्णइ, जम्हा अणं खबइ तम्हा खवणी भण्णह।