Book Title: Niryukti Panchak
Author(s): Bhadrabahuswami, Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 733
________________ परिशिष्ट ७ : परिभाषाएं I उण्हपरीसह — उष्णपरीषह । जे तिव्वपरीणामा परीसहा ते भवंति उण्हा उ । जो तीव्र परिणाम वाले परोषह हैं, वे उष्ण परीयह कहलाते हैं। उदाहरण – उदाहरण । तद्धम्मभाषी दितो उदाहरणं । ६३५ D ( आनि २०४ ) कथनीय धर्म का समर्थन करने वाला दृष्टान्त उदाहरण कहलाता है। (दशअचू. पृ. २०) तथोदाह्रियते प्राबल्येन गृह्यतेऽनेन दाष्टन्तिकोऽर्थ इति उदाहरणम् । दाष्टन्तिक अर्थ को प्रबलता से प्रस्तुत करने वाला उदाहरण हैं। (दशहाटी. प. ३४ ) उद्देसित - उद्दिष्ट उद्देसितं जे उद्दिस्स किज्जति । जो किसी को उद्दिष्ट कर बनाया जाए, वह उद्दिष्टकृत है। उब्धिय— उद्भिज | उब्भिया नाम भूमिं भेत्तूण पंखालया सत्ता उप्पज्जंति। पृथ्वी को भेदकर उत्पन्न होने वाले पतंग आदि सत्व उद्भिज कहलाते हैं। ( दशजिच्र. पू. १४०) उवगरणसैजम—उपकरणसंयम । उषगरणसंजभो महाधणमोल्लेसु वा दूसेसु वज्जणं तु संजमो । (दशअचू. पृ. १२) महामूल्यवान् वस्त्रों के उपभोग का संग्रम उपकरणसंयम हैं। उवज्झाय — उपाध्याय । अविदिण्णदिसो गणहरपदजोग्गो उवज्झातो। जो गणधर पद के योग्य है, किन्तु अभी तक पद प्राप्त नहीं हैं, वह उपाध्याय हैं। (दशअचू. पृ. १५) (दश अचू. पू. ६ ) 'ठवघाणष - उपाधनकर्त्ता । ठवधाणवं जो जो सुयस्स जोगो तं तहेव करेति । जिस-जिस सूत्र के वाचन में जितना तपोयोग का कथन है, वैसा करने वाला उपधानवान् ( उच्. पृ. १९८ ) है। उवधि - उपधि । उवधी नाम अन्येर्षा वशीकरणम् । ( सूचू. १ पृ. १०२) दूसरों को वश में करने का साधन उपाधि है। उषमाण— उपमान। ठपमीयतेऽनेन दाष्टन्तिकोऽर्थ इत्युपमानम् । दृष्टान्तगत अर्थ को जो उपमित करता है, वह उपमान है। उववहण — उपबृंहण । तत्रोपबृंहणं नाम समानधार्मिकाणां सद्गुणप्रशंसनेन तद्वृद्धिकरणम् । साधार्मिकों के सद्गुणों की प्रशंसा कर उनको वृद्धिंगत करना उपबृंहण है। (दशहाटी. प. ३४ ) (दशहाटी. प. १०२ ) उपसंति — उपशान्ति । णवस्स कम्मस्स अकरणं पोराणस्स खवर्ण उवसंती बुच्चति । नए कर्मों का अबंध और बंधे हुए पुराने कर्मों का क्षपण उपशांति । (आनू. पृ. ९१ ) उवहाण—उपधान । उवहाणं णाम तवो जो जस्स अझयणस्स जोगो आगाढमणागाढो सहेब अणुपालेयध्यो । जिस आगम के लिए जो तप विहित है, उसका उसी रूप में पालन करना उपधान हैं। ( दशजिचू. पू. १००) उवेशासंजम - उपेक्षासंयम उवेहासंजनो-- संजमवंतं संभोइयं पमायंत चोर्देतस्स संजमो, असंभोइयं चोयंतस्स असंजमो, पावयणीए कज्जे चियत्ता वा से पहिचोयण त्ति अण्णसंभोइये पिचोपति, निहत्थे कम्मायाणेसु सीदमाणे उबेहंतस्स संजमो । सांभोजिक मुनि को प्रमाद के प्रति जागरूक करना, प्रवचन के प्रति होने वाली अवहेलना

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