SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 735
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट ७ : परिभाषाएं ६३७ है। कल्लाण-कल्याण, मुक्ति। कल्लं-आरोग्गं तं आगेइ कल्लाणं संसारातो विमोक्खण। कल्य का अर्थ है-आरोग्य। जी आरोग्य या स्वास्थ्य प्रदान करता है वह है कल्याण । कल्याण का अर्थ है-संसार से मुक्त हो जाना। (दशअचू पृ. ९३) कसायकुसील-कषायकुशील। फसायकुसौलो जस्स पंचसु णाणाइस कसारहिं विराहणा कमजति सो कसायकुसीलोत्ति। जो ज्ञानादि पांच प्रकार के आकार में कषाय के द्वारा पिता cl:. है, या गोल (उचू पृ. १४४) कहा-कथा । तव-संजमगुणधारी, जं चरणरया कहेंति सन्भावं। सयजयजीवहिर्य, सा उ कहा देसिया समए॥ जो ताप, संयम आदि गुणों के धारक चारित्ररत श्रमण संसारस्थ प्राणियों को हितकर तथा परमार्थ का उपदेश देते हैं, वह कथा (उपदेश) कहलाती है। (दशनि १८३) कागिणी-काकिनी । कागिणी णाम रूवगस्स असीतिमो भागो धीमोवगस्स चतुभागो। रुपए का अस्सीवां भाग तथा विसोपग (एक सिक्का) का चौथा भाग काकिनी है। (उचू पृ. १६१) काम-काम। उक्कामयंति जीवं धम्मातो तेण ते कामा। जो धर्म से उत्क्रान्त–दूर करता है, वह काम कहलाता है। • विविक्तवित्रम्भरसो हि कामः। एकान्त में शृंगाररस की बात करना काम है। (सूचू १ पृ. १०५) • शब्द-रस-रूप-गन्ध-स्पर्शाः मोहोदयाभिभूतैः सत्वैः काम्यन्त इति कामाः। मोह के उदय से अभिभूत व्यक्तियों द्वारा जो इन्द्रियविषय काम्य होते हैं, वे काम कहलाते (दशहाटी प. ८५) कायसंजम-कायसंयम। कापसजमो नाम आवस्सगाइजोगे मोत्तुं सुसमाहियपाणिपादस्स कुम्मो इव गुतिदियस्स चिट्ठमाणस्स संजमो भवइ । आवश्यक आदि संयम-योग में की जाने वाली प्रवृत्ति को छोड़कर जो हाथ-पैर से सुसमाहित तथा कूर्म की भांति गुप्तेन्द्रिय होता है, उसके 'क्राय-संयम' होता है। (दशजिचू पृ. २१) कासव-काश्यप। काशो नाम इक्खु भण्णइ, जम्हा ते इक्टुं पिबति तेन काश्यपा अभिधीयते। 'काश्य का अर्थ है-इक्षु । इक्षु का पान करने वाला काश्यप कहलाता है। (दशजिचू पृ. १३२) कित्ति-कीर्ति । परेहिं मुणसंसणं कित्ती। दूसरों द्वारा किया जाने वाला गुणकोर्तन कीर्ति है। (दशअचू पृ. २२७) • सर्वदिग्व्यापी साधुवाद: कीर्तिः। सब दिशाओं में व्याप्त साधुवाद कोर्ति है। (दशहाटो प. २५७) किमिच्छय-किमिच्छक । राया जो जं इच्छति तस्स तं देति एस रायपिडो किमिच्छतो। याचक जो चाहता है, राजा उसको वह देता है--यह राजपिंड किमिच्छक है। (दशअचू पृ. ६०)
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy