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नियुक्तिपंचक १३. नलबाम शुलाहे की पुषिता
चाणक्य ने नन्द राजा को उत्थापित करके चन्द्रगुप्त को राज्य-सिंहासन पर बिठा दिया। इधर चन्द्रगुप्त राजा का चोरमाह (चोरों को पकड़ने वाला) नन्द के आदमियों से मिल गया और नगर में चोरी करने लगा। चाणक्य को दूसरे चोरगाह की खोज करनी थी। वह त्रिदण्ड लेकर परिव्राजक के वेश में नगर में घूमने लगा।
वहां यह नलदाम नामक तन्तुवाय (जुलाहे) के पास गया और उसकी अयनशाला में ठहर गया। उस तन्तुवाम के बच्चे को मार्ग में खेलते समय मकोडों ने काट खाया । वह रोता हुआ पिता के पास आया। सारा वृतान्त जानकर नलदाम ने बिल खोदकर मकोडों को जला दिया।
चाणक्य बोला--इन्हें श्यों जला रहे हो? जुलाहे ने उत्तर दिया--इन्हें समूल नष्ट नहीं कर दूंगा तो ये फिर काट खाएंगे ।
चाणक्य ने सोचा--यह उपयुक्त चोरगाह मुझे मिल गया है। यही नन्द के चोरों का समूल उच्छेद कर सकेगा। चाणक्य ने उसे चोरमाह बना दिया ।
उस जुलाहे ने चोरों को विश्वास दिला दिया कि हम मिलकर चोरी करेंगे। उन चोरों ने दूसरे चोरों का अता-पता भी बता दिया और उन्होंने फिर दूसरे पोरों का क्योंकि उन्होंने सोचा-'अब हम सब मिलकर सरलता से चोरी कर सकेंगे।' सब चोरों का पता लगने पर उस चोरमाह जुलाहे ने उन सब चोरों को मरवा दिया ।' १४. महाराज प्रद्योत और अभयकुमार
___अभय और राजा प्रयोत की कथा के लिए देखें सूनि की कथा सं. ३। १५. गोविंब आचार्य
गोविंद नामक एक बौद्ध भिक्ष थे। वे एक जैन आचार्य द्वारा वाद-विवाद में अठारह बार पराजित हुए। पराजय से दुःखी होकर उन्होंने सोचा कि जब तक मैं इस सिद्धांत को नहीं जानूंगा तब तक इन्हें नहीं जीत सकता । इसलिए हराने की इच्छा से शानप्राप्ति के लिए उसी
आचार्य को दीक्षा के लिए निवेदन किया। सामायिक आदि ग्रंथों का अध्ययन करते हुए उन्हें सम्यक्त्व का बोध हो गया। गुरु ने उन्हें व्रत-दीक्षा दी । दीक्षित होने पर गोविंद मुनि ने सरलता पूर्वक अपने दीक्षित होने का प्रयोजन गुरु को बतला दिया। १६. उपाय कथन का विवेक (पिंगल स्थपति)
एक राजा ने एक तालाब बनवाया जो समूचे राज्य में सारभूत-श्रेष्ठ था। वह तालान प्रतिवर्ष भरने के बाद फूट जाता । एक बार राजा ने अपने मंत्रियों तथा अन्यान्य बुद्धिमान् व्यक्तियों को एकत्रित कर पूछा- ऐसा क्या उपाय किया जा सकता है जिससे कि यह तालाब न फूटे, भरा का परा रह जाए।' वहा एक कापालिक भी उपस्थित था। उसने कहा---'महाराज ! जिस व्यक्ति के शिर तथा वाढी-मूंछ के बाल कपिल (पीले) हों, उसे जीवित अवस्था में वहां गाढ दिया जाए जहां से तालाब फूटता है तो भविष्य में तालाब नहीं फूटेगा। सभी ने यह उपाय सुना । कुमारामात्य १. दशनि ७७, अच पृ. २६, हाटी प. ५२ । २. दशनि ७८, निभा ३६५६, 'यू. पृ. २६० ।