________________
परिशिष्ट ६ : कथाएं
६११
ने अपनी पत्नी साध्वी को भिक्षाचयों करते देखा। उस पूर्वभुक्त काम-क्रीड़ाओं की स्मृति हो आई
और वह उसमें पुनः अनुरक्त हो गया। मुनि ने अपने साथी मुनि से कहा-'यह मेरी पत्नी है। इसे श्रामण्य से च्युत कर दो। मैं इसे पुन: स्वीकार करना चाहता हूं।' मुनि साथी ने सोचा कि गलत कार्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। उसने कहा-पुने ! मैं इस कार्य को आज ही कर दूंगा या मर जाऊंगा।' यह कहकर वह साध्वियों के उपाश्रय में गया और महत्तरिका को सारी बात बता दी। प्रवर्तनी ने साध्नी को जलाकर कह!.... तुम इस देश को छोड़कर दूसरे देश में चली जाओ।' साध्वी ने यह बात सुनकर प्रवर्तनी से कहा-'इस स्थिति में मैं अकेली किसी अन्य देश में नहीं जा सकती। वह वहां भी मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा। मेरे लिए यही श्रेष्ठ है कि चरित्र भंग की अपेक्षा भक्तप्रत्याख्यान करके प्राण त्याग दूं।'
उस सार्थी मुनि ने विचलित और दृप्त मुनि को आकर कहा–'यहां तुम दोनों का मिलन दुष्कर है। अमुक दिन मिलना होगा, अन्यथा यह शक्य नहीं है। वह दृप्त मुनि वहीं रहा और दिन गिनने लगा। साध्वी ने उस दिन को निकटता को देखकर वैहानसमरण-फांसी लगाकर अपना शरीर त्याग दिया। मरकर वह देवलोक में उत्पन्न हुई। आचार्य को साध्वी के कालगत होने निवेदन किया गया। जब पति साधु ने यह बात सुनी तो उसके मन में संवेग उत्पन्न हो गया। उसने सोचा-'साध्वी ने प्रतभंग के भय से अनशनपूर्वक मृत्यु का आलिंगन किया है। मेरा मानसिक रूप से तो तभंग हो ही चुका है अत: इस अकार्य के प्रायश्चित्त हेतु मुझे भी अनशन कर लेना चाहिए।' वह मुनि अपने आचार्य के पास आया और उनकी अनुज्ञा लेकर अनशनपूर्वक मृत्यु का वरण किया। वह भी देवलोक में उत्पन्न हुआ।
मुनि देवलोक से च्युत होकर अनार्य देश के आईकपुर नगर के राजा आईक राजा की पत्नी धारिणी के यहां पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम आर्द्रक कुमार रखा गया। उस कुल की यह परम्परा थी कि वहां उत्पन्न होने वाले सभी आद्रक ही कहलाते थे। वह साध्वी भी देवलोक से च्युत होकर बसन्तपुर के एक सेठ के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न हुई। आर्द्रक कुमार क्रमशः यौवन अवस्था को प्राप्त हुआ। एक बार महाराज आर्द्रक ने राजा श्रेणिक से मित्र-स्नेह प्रकट करने के लिए विशिष्ट उपहार भेजे । कुमार आर्द्रक को जब यह बात ज्ञात हुई तो उसने दूत से पूछा--'ये सारे बहुमूल्य उपहार कहां भेजे जा रहे हैं?' दूत ने कहा-'आपके पिता के परममित्र महाराजा श्रेणिक को ये सारे उपहार भेजे जा रहे हैं।' आईक कुमार ने पूछा-'क्या उनके कोई राजकुमार है?' दूत ने स्वीकृति में अपना सिर हिला दिया। आईक कुमार ने कहा- ये उपहार मेरों ओर से राजकुमार को भेंट कर देना और कहना कि राजकुमार आपसे प्रगाढ़ मैत्री का सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है।' दूत दोनों के बहुमूल्य उपहार लेकर मगध देश की ओर चला। वह राजगृह पहुंचा। राजाज्ञा से वह सभा में आया और प्रणाम कर राजा आर्द्रक द्वारा भेजे गए उपहार भेंट किए । राजा श्रेणिक ने दूत का याचित सम्मान किया।
दूसरे दिन वह राजकुमार अभय के पास गया और राजकुमार आर्द्रक द्वारा भेजे गए उपहार देकर प्रगाढ़ मित्रता की बात कही। उसने भी उपहार स्वीकार किए और दूत का सम्मान किया। अभय