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नियुक्तिपंचक
जो ज्ञान आदि में स्थिर चित्त वाला होता है तथा अनुलोम और प्रतिलोम उपसर्गों और रतिअरति से भग्नचित्त नहीं होता, वह अचल कहलाता है।
(दचू.प. ४३) अरह-अर्हत् । नास्प रहस्य विद्यत इति अरहा। जिनके लिए कोई रहस्य नहीं रहता, वे अर्हत् हैं।
(उचू.पृ. १४५) अलोलुय-अलोलुप। आहारदेहादिसु अपडिब अलोलुए। जो आहार और शरीर के प्रति अप्रतिबद्ध-अनासक्त होता है, वह अलोलुप हैं।
(दशअचू.पू. २५४) " अलोलुए नाम ठक्कोसेसु आहारादिसु अलुलो भवइ अहवा जो अप्पणो वि देहे अपडिबनो सो अलोलुओ भण्णा। जो अच्छे आहार आदि में लुब्ध नहीं होता, वह अलोलुप है अथवा जो अपने शरीर में भी अप्रतिबद्ध होता है, वह अलोलुप कहलाता है।
(दशजिचू.पू. ३२१) अबिहेडय-दूसरों को तिरस्कृत न करने वाला। अविहेडर णाम जे पर अक्कोस-तेप्पणादीहि न
विसयति। जो आक्रोश, ताड़ना आदि के द्वारा दूसरों को तिरस्कृत नहीं करता, उसे अविहेटक कहते
(दशजिचू.पृ. ३४३) • परे विग्महविकथापसंगे सुसमत्यो वि ण तालणादिणा बिहेडयति एवं अविहेहए। जो समर्थ होते हुए भी विग्रह और विकथा के प्रसंग में ताड़ना आदि के द्वारा दूसरों का तिरस्कार नहीं करता, वह अविहेटक कहलाता है।
(दशअचू. पृ. २४०) असप्पलावि-असत्प्रलापी। असप्पलावी नाम जो असंतं उल्लावेति। जो असत् बात कहता है, वह असत्प्रलापी है।
(उचू,पृ. १९७) असम्भपलावि-असभ्य बोलने वाला। असमप्पलावी जो असम्म उमावेति खरफरस-अक्कोसादि
असमै पलवइ। जो कर्कश, परुष, आक्रोश आदि असभ्य वचनों से बोलता है, वह असभ्यप्रलापी है।
(उचू. पृ. १९७) असमिक्खियपलावि-बिना विचारे बोलने वाला। असमिक्खियपलावी असमिक्खिडं उल्लविति, जं
से मुहातो एति ते उपवेति । जो बिना सोचे-समझे बोलता है, जो मुंह में आता है,वहीं बोल डालता है, वह असमीक्ष्यप्रलापी
(उचू.पृ. १९७) अस्स-अश्व। अश्नाति अश्नुते वा अध्यानमिति अश्वः। जो मार्ग को खाता है, पार हो जाता है अथवा जो पथ में व्याप्त हो जाता है, वह अश्व
(उचू.प. १२२) आठर-आतुर । सारीरमाणसेहि दुक्खेहिं आतुरीभूतो अच्यत्यं तुरति आतुरो। शारीरिक और मानसिक दुःखों से दुःखी होकर जो अत्यंत त्वरा करता है, वह आतुर है।
(आचू.पू. १०८)