________________
परिशिष्ट ६ : कथाएं
रही थी । खेल-खेल में वह मुनि को देखकर बोली-'यह मेरा पति है।' यह सुनकर पास में अदृश्य रूप में स्थित देव ने मन ही मन सोचा कि लड़की ने अच्छा चिंतन किया। दिव्य प्रभाव से उसी समय साढ़े तेरह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की वृष्टि हुई । राजा को जब यह बात ज्ञात हुई तो वह स्वर्ण मुद्राओं को हस्तगत करने आया। उसी समय देव सर्प रूप में उपस्थित हुआ और राजा को कहा–'राजन् ! यह सारी सम्पत्ति सेठ की पुत्री की है। कोई दूसरा इस पर अधिकार करने की चेष्टा न करे।' लड़को का पिता आया और सारी सम्पत्ति सुरक्षित कर घर ले गया।
कायोत्सर्ग सम्पन्न होने के बाद आर्द्रककुमार ने सोचा कि अब मुझे यहां नहीं रहना चाहिए। वह तत्काल वहां से अन्यत्र चला गया। एक बार श्रेष्ठी-पुत्री से विवाह करने के इच्छुक कुछ युवक आए। कन्या ने अपने माता-पिता से कहा-'कन्या का विवाह जीवन में एक बार ही होता है, अनेक बार नहीं। मेरा तो उसके साथ विवाह हो चुका है, जिसका धन आपने एकत्रित किया है। वही मेरा पत्ति है।' पिता ने पूछा-'क्या तुम उसे पहचानती हो?' कन्या ने कहा कि उनके पैरों से मैं उन्हें पहचान लूंगी। भिक्षु की खोज हेतु सेठ ने भिक्षुओं को दान देना प्रारम्भ किया। अनेक प्रकार के भिक्षु भिक्षार्थ आने लगे। बारह वर्ष बीतने पर एक दिन भवितव्यता के योग से भिक्षुक बना राजकुमार आद्रक उसी बसन्तपुर नगर में आया । वह भिक्षार्थ उसी सेठ के घर पहुंचा। लड़की ने उसे पदचिह्न से पहचान लिया। कन्या ने अपने पिता से कहा-'यही मेरा पति है।' कन्या उस भिक्षुक के पीछेपीछे जाने लगी। भिक्षुक ने सोचा कि इस प्रकार तो मेरा तिरस्कार होगा। उसे देवता का वचन याद आया। कर्मों का उदय मान भिक्षु-वेश का त्याग कर वह श्रेष्ठी-कन्या के साथ रहने लगा। उसके एक पुत्र हुआ। उसके साथ रहते हुए बारह वर्ष बीत गए. एक दिन आईककुमार ने अपनी पत्नी से कहा कि अब तुम दो हो गए हो। मैं पुनः प्रवजित होकर अपना कल्याण करना चाहता हूं। कन्या ने प्रत्युत्तर नहीं दिया, वह रोने लगी।
एक दिन वह सूत बनाने के लिए कपास कात रही थी। इतने में उसका पुत्र उसके पास आया और बोला-'मां, तम यह क्या कात रही हो? यह काम तम्हारे लायक नहीं है।' उसने कहा-'तुम्हारे पिता प्रव्रज्या लेना चाहते हैं। तुम अभी छोटे हो अत: जीवन-निर्वाह हेतु मैंने यह कार्य प्रारम्भ कर दिया है।' बालक प्रतिभासम्पन्न और चंचल था। मां के द्वारा काता गया सूत लेकर वह पिता के पास पहुंचा। पिता को सूत से वेष्टित करते हुए वह बोला-'मेरे द्वारा बांधे जाने पर अब आप कहां जाएंगे?' आईक कुमार ने सोचा-बालक ने मुझे जितने तंतुओं से बांधा है, उतने वर्ष मुझे गृहवास में और रहना है, आगे नहीं। तंतु गिनने पर बारह निकले। वह बारह वर्षों तक घर पर रहा फिर घर से अभिनिष्क्रमण कर प्रव्रजित हो गया।
आर्द्रक कुमार ने एकाकी विहार करते हुए राजगृह की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में एक भयंकर जंगल आया। उस जंगल में पांच सौ चोर रहते थे। ये वे ही संरक्षक थे, जिन्हें आर्द्रककुमार के संरक्षण के लिए नियुक्त किया था। जब आर्द्रक अपने घोड़े पर पलायन कर गया तब वे पांच सौ रक्षक राजाज्ञा की अवहेलना के भय से घर न जाकर जंगल में चले गए और वहां चोरी, लूट