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परिशिष्ट ६ : कथाएं
का मेरे ऊपर बहुत अधिक स्नेह है। वह मेरी प्यास बुझाने हेतु जल लेने गया हुआ है। वह आते ही मुझे मरणावस्था में देखकर तुम्हें मार देगा अत: इन्हीं पैरों से तुम शीघ्रता से यहां से चले जाओ।'
तब पादतल से बाण निकालकर जराकुमार वहां से चला गया। वासुदेव ने भी वेदना समुद्घात उत्पन्न होने पर नमस्कार महामंत्र का जप प्रारम्भ कर दिया। परमपूजा के योग्य अर्हतों को नमस्कार ! सुख और समृद्धि से युक्त सिद्धों को नमस्कार! पांच आचारों का पालन करने वाले आचार्यों को नमस्कार ! स्वाध्याय-ध्यान में रत उपाध्यायों को नमस्कार ! साधना में संलग्न साधुओं को नमस्कार ! जिनेन्द्र अरिष्टनेमि को नमस्कार जो सकल आसक्तियों का त्याग करके महामुनि बन गए।
कृष्ण ने तृण-संस्तारक बनाकर अपने शरीर को कपड़े से ढका और वीरासन में स्थित होकर सोचने लगे-'शांब, प्रद्युम्न, निरुद्ध, सारण आदि कुमार, यादव एवं स्वमणी आदि रानियां मन्य हैं, जिन्होंने सारे संगों का त्याग कर भगवान् के पास प्रव्रज्या ग्रहण की है। मैं हतभागी तप और चारित्र का पालन किए बिना ही मर रहा हूँ। अचानक जीवन के अंतिम समय में कृष्ण ने शुभ भावों को विस्मृत कर दिया। वे सोचने लगे-'इस अकारण वैरी द्वीपायन ने नगरी को जला कर सारे यादवकुल का नाश कर दिया इसलिए वह महापापी मारने योग्य है । इस प्रकार अशुभ परिणामों से मृत्यु प्राप्त कर वे तीसरी नारकी में उत्पन्न हुए।
इधर बलदेव शीघ्रता से कमलिनी के पत्तों का दोना बनाकर उसमें पानी लेकर कृष्ण की दिशा में चले । विपरीत शकुन हुए। वे वहां आए। जल को नीचे रखकर बलदेव ने सोचा-'मेरे हृदय को आनन्द देने वाला यह कृष्ण अभी सो रहा है । यह जब जागकर उठेगा तभी मैं इसे पानी दूंगा।' अत्यंत स्नेह होने के कारण, व्याकुल मन के कारण बलदेव कृष्ण की मौत को नहीं जान सके । कुछ समय बाद कृष्ण के शरीर के चारों ओर काली मक्खियां भिनभिना रही हैं, यह देखकर भयभीत होकर बलदेव ने कृष्ण के मुख से कपड़ा हटाया। 'अरे यह तो मर गया है ' ऐसा सोचकर बलदेव पृथ्वी पर मूर्छित होकर गिर पड़े। मूर्छा टूटने पर बलदेव ने तीव्र सिंहनाद किया। उससे सारे पशु, पक्षी और वन कांप उठा।
बलदेव ने विलाप करना प्रारम्भ किया—'यह मेरा भाई हृदयवालभ, पृथ्वी का एकमात्र वीर, जिस निर्दयी और दुष्ट व्यक्ति के द्वारा मारा गया है,वह यदि मेरा सच्चा हितैषी/सच्चा योद्धा है तो मेरे सामने आए। इस सुप्त, प्रमत्त और प्यास से व्याकुल मेरे भाई को क्यों मारा? निश्चित ही वह पुरुषों में अधम है, जिसने ऐसा जघन्य कार्य किया है। इस प्रकार उच्च शब्दों में बोलता हुआ बलदेव वन में चारों ओर घूमता हुआ पुनः गोविंद के पास आया। वहां आकर वह उच्च स्वर में रोने लगा-'हा मेरे भाई ! हा जनार्दन ! हा समर्थ योद्धा! हा महारथी ! हा हरिचंद ! तुम्हारी किस-किस बात पर रोऊँ? क्या सौभाग्य था? क्या धीरज, बल, वर्ण और रूप था? तुम कहते थे 'बल' मेरा प्रिय भाई है। आज ऐसी विपरीतता क्यों? जिससे तुम उत्तर भी नहीं दे रहे हो? तुम्हारे विरह में मैं मंदभाग्य अकेला क्या करूंगा? अब कहां जाऊं? कहां रहूँ? किसको कहूं? किसको पूर्वी? किसकी शरण में जाऊं? किसको उपालम्भ दूं? किससे रोष करूं? मेरे लिए तो सारा संसार ही नष्ट हो गया।