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आचारांग नियुक्ति
२८९ २८. शारीर, भव्यशरीर तथा तद्व्यतिरिक्त अशानियों का वस्तिनिरोध द्रव्य ब्रह्मचर्य है, यह संयम ही है । साधुओं का बस्तिसंयम भाव ब्रह्मचर्य है । (इसके अठारह प्रकार हैं।')
२९. परण शब्द के छह निक्षेप होते हैं नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव, क्षेत्र और काल । द्रव्य परण के तीन प्रकार है-पति, आहार और गुण। जिस क्षेत्र में गति, आहार आदि किया जाता है, वह क्षेत्रचरण है । जिस काल में गमि, आवार आदि का आचरण या व्याख्या की जाती है, वह कालचरण है।
३०. भावपरण तीन प्रकार का है-१. गति भावचरण-साधु का ईर्यासमितिपूर्वक चलना, २. भक्षण भादचरण-शुद्ध पिडेषणापूर्वक आहार करना ३. गुण भावचरण ! गुण भावचरण दो प्रकार का है-प्रशस्त तथा अप्रशस्त । आचारांग के नौ अध्ययन प्रशस्त गुण भावचरण
३१-३४. आचार के नो अध्ययन तथा उनका विषय इस प्रकार है१. शस्त्रपरिजा--जीवसंयम का निरूपण । २. लोकविय-कर्मबंध तथा कर्ममुक्ति की प्रक्रिया का अवबोध । ३. शीतोष्णीय · सुख-दुःख की तितिक्षा का अवबोध । ४. सम्यक्त्व-सम्यक्त्व की दखता का अवबोध । ५. लोकसार-रत्नत्रयी से युक्त होने की प्रक्रिया। ६. घुत-निस्संगता का अवबोध । ७. महापरिज्ञा-मोह से उद्भूत परीषह और उपसर्गों को सहने की विधि । ८. विमोक्ष-निर्याण अर्थात् बन्तक्रिया की आराधना । ९. उपमानश्रुत-आठ अध्ययनों में प्रतिपादित अर्थों का महावीर द्वारा अनुपालन 1 ये नौ अध्ययन आचार कहलाते हैं तथा शेष (आचारचूला) अध्ययन आधारान कहलाते
३५. प्रथम अध्ययन-शस्वपरिक्षा के सात उद्देशक है-प्रथम उद्देशक में जीव के अस्तित्व का प्रतिपादन तथा शेष छह उद्देशकों में षड्जीवनिकाय की प्ररूपणा, जीवनध से कर्मबंध का निरूपण तथा विरति का प्रतिपादन है।
३६. शस्त्र के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य शस्त्र है-खड्ग, अग्नि, विष, स्नेह, अम्लता, क्षार, लवण आदि । भावशास्त्र है- दुष्प्रयुक्त भाष-अन्तःकरण, वाणी और काया की अधिरति ।
३७. परिज्ञा शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य परिज्ञा के मुख्य दो प्रकार है-ज्ञपरिशा और प्रत्याख्यान परिज्ञा। व्यतिरिक्त द्रव्य प्रत्याख्यान परिजा हैशरीर और उपकरण का परिज्ञान। भाषपरिज्ञा के भी दो प्रकार है-जपरिजा और प्रत्याख्यान परिक्षा। १. मादी, पृ०६:
औदारिकादपि तथा, दिव्यात् कामरतिसुखात्,
तब ब्रह्माष्टादविकल्पम् ॥ त्रिविधं त्रिविधेन विरतिरिति नबकम् ।