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परिशिष्ट कथाएं
४७५ शान्तचित्त है। असदकृत्य करने वाले हमने इसकी बाशातना की है। वे मन ही मन पश्चात्ताप करने लगे । इस प्रकार शुभ अध्यबसायों के कारण उनके बादारक को कामय हुआ और उन सबको कैवल्य की प्राप्ति हो गई।' ६. सत्यप्रतिज्ञ महिला (अभयकुमार और वृद्धकुमारी)
राजगह नाम का नगर था। वहां श्रेणिक राजा राज्य करता था। रानी ने एक बार राजा कहा-'तक खंभे वाला प्रासाद निर्मित करवाएं।' राजा ने भनेक बढ़यों को प्रासादनिर्माण का आदेश दिया। वे बढ़ई उपयुक्त काठ की खोज करने जंगल में गए। अभयकुमार साथ में था। यहां उन्होंने सीधा-सरल एक महान् वृक्ष देख। । बह लाक्षणिक था। उन्होंने वहां धूप-दीप कर कहा- 'जो इस वृक्ष का अधिष्ठाता देव है, वह हमें दर्शन दे तो हम इस वृक्ष को नहीं काटेंगे । पदि देव साक्षात् दर्शन नहीं देंगे तो हम इसे काट डालेंगे।'
वृक्षवासी वाणच्यंतर देव अभय कुमार को दर्शन देकर बोला--'मैं राजा के लिए एक खंभे वाला प्रासाद बना दूंगा और सभी ऋतुओं के अनुकल सब प्रकार की पनजालियों से युक्त एक नमीचा भी बना दूंगा । तुम इस वृक्ष को मत काटो। इस प्रकार देव ने एक खंभे वामा प्रासाद निर्मित कर दिया और साथ ही साथ एक सुन्दर बगीचा भी बना दिया ।
एक बार एक चाण्डालिन को अकाल में आम खाने का शोहद उत्पन्न हुआ। उसने अपने पति से आम लाने को कहा। उस समय आम का मौसम नहीं था। चण्डाल राजा के उस सर्व ऋतुओं में पुष्पित और फलित रहने वाले उद्यान के पास गया और अबनामिनी विद्या के द्वारा आम की शासानीचे की। फल तोडे और उन्नामिनी विद्या से शाखा को पूर्ववत करके चला गया।
प्रातः राजा ने देखा कि आमों की चोरी होईपर किसी मनुष्य के पदचिन्ह वहाँ नहीं है। राजा ने सोचा-क्या कोई मनुष्य यहाँ चोरी कर गया। बया उसमें यह शक्ति है कि वह आए और पदचिन्ह अंकित न हो । यदि ऐसा शक्तिधर कोई मनुष्य है तो वह मेरे अन्तःपुर में भी धृष्टता कर सकता है।
राजा ने तत्काल अभयकुमार को बुलाकर कहा--'सात दिनों के भीतर चोर को पकड़कर नहीं लाओगे तो तुम जीवित नहीं रह सकोगे । यह सुनकर अभयकुमार चोर की खोज में लग गया।
एक दिन अभयकुमार ने देखा कि एक स्थान पर नर्तक तत्म करना चाहता है और लोग इकट्ठे हो रहे हैं । वहां जाकर अभयकुमार ने एकत्रित लोगों से कहा- 'नट तयार होकर आता है सब तक मेरी एक कथा सुनो
एक नगर में एक दरिद्र सेठ रहता था । उसकी पुत्री वृद्धकुमारी अत्यन्त रूपवती थी। वह श्रेष्ठ पति के लिए कामदेव की अर्चना करती थी । एक दिन चोरी से फूल तोड़ते समय मासी ने उसे देख लिया। जब माली उसको पकड़कर कदर्थना करने लगा तब वह बोली-'तुम्हारे भी बहिन, भानजी हैं, उनकी तरह ही मुझको समझो और मुझ कुमारी की गदर्थना मत करो | माली
१. दशअचू पृ. २१,२२ हाटी प, ३७-३९ ।