________________
उत्तराध्ययन पर कोई माष्य उपलब्ध नहीं है । केवल क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय अध्ययन के प्रसंग में निर्ग्रन्थ एवं उसके भेदों की व्याख्या हेतु कुछ भाष्य गाथाएं प्राप्त होती हैं। ये भाष्य गाथाएं किसके द्वारा लिखी गयीं इसकी कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती है। संभव लगता है कि व्याख्या के प्रसंग में अन्य भाष्य गाथाओं से ये गाथाएं यहां उद्धृत कर दी गयी हों ।
हस्त दाइशों एवं वांत्याचार्य को टीका में प्रकाशित भाष्य गाथाओं के क्रम में थोड़ा अन्तर है । हमने हस्त आदर्शों के आधार पर गाथाओं का क्रम रखा है । उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य की प्रकाशित टीका में २५७-५९ इन तीन पत्रों में ये गाथाएं मिलती हैं ।
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
उत्तराध्ययन भाष्य
५.
पुलाग - बकुस कुसीला, णिग्गंथ - सिणायगा य एएस पंचण्ड वि होइ विभासा इमा होइ पुलागो दुविहो, लद्धिपुलागो तहेव लागो संघाइकज्ज इतरो तु
णायव्वा । कमसो' |
लिंगपुलागो अन्नं, णिक्कारणतो करेति मणसा अकपियाई, णिसेवओ
इयरो य । पंचविहो ||
णाणे दंसण चरणे, लिंगे अहासुहुम य बोध | णाणे दंसण धरणे, तेसि तु विराण असारो ॥
जो लिंगं । होतऽहासुमो ॥
सारीरं उचकरणे, बाउसियत्तं दुहा समयस्वायं । क्वित्याणि धरे, देसे य सव्वसरीरम् ॥ आभोगमणाभोगे, संबुद्धमसंडे मासु । gविहो उ बाउसो खलु, पंचविहो होति णायव्वो ।
बाभोगो जाणतो, करेति दोसं तहा अणाभोगो । मूलुत्तरेहि संवुड, विवरीय असंबुडो होति || अच्छिमुह मज्जमाणो, होइ महामुदुमओ तहा बउसो | डिसेवणाकसाए होइ कुर्सीलो दुहा एसो ॥
१. इस गाथा से पहले शान्त्याचार्य की मुद्रित टीका में निम्न गाथा अतिरिक्त मिलती है
तस्थ नियंठ पुलाती, बकुल कुसील नियंठ पहातो म ।
तस्य पुलाओ दुविहो, मासेषण लद्धितो चेव ॥