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निर्मुक्तिपंचक १६८. स्थान शब्द के पन्द्रह निक्षेप है१. नाम स्थान ६. ऊर्च स्थान
११. योध स्थान २. स्थापना स्थान ७. उपरति स्थान
१२. अचल स्थान ३. द्रव्य स्थान ८. वसति स्थान
१३. गणना स्थान ४. क्षेत्र स्थान ९. संयम स्थान
१४. संधना स्थान ५. काल स्थान १०. प्रग्रह स्थान
१५. भाव स्थान। १६९. प्रस्तुत प्रकरण में सामुदानिक क्रियाओं तथा सम्यक् प्रयुक्त भावस्थान का अधिकार है। इन सभी स्थानों और क्रियाओं से पूर्वोक्त सभी पुरुषों तथा प्रावादुकों का परीक्षण करना चाहिए। तीसरा अध्ययन : आहारपरिज्ञा
१७०. आहार शब्द के पांच निक्षेप हैं- नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र और भाव ।
१७१,१७२. द्रव्य आहार के तीन भेद हैं- सचित्त, अचित्त और मित्र । क्षेत्र आहारजिस क्षेत्र में आहार किया जाता है, उत्पन्न होता है, व्याख्यायित होता है, अथवा नगर का जो देश धान्य, इन्धन आदि से उपभोग्य होता है, वह क्षेत्र आहार है। (जैसे- मथुरा का निकटवर्ती देश परिभोग्य होने पर वह मथुरा का आहार कहलाता है।)
भाव आहार (आहारक की अपेक्षा से) के तीन प्रकार हैं१. ओज आहार-अपर्याप्तक अवस्था में तैजस और कार्मण शरीर से लिया जाने वाला
आहार, जब तक अपर औदारिक या वैक्रिय शरीर की निष्पत्ति नहीं हो जाती। २. लोम आहार-चारीर पर्याप्ति के उत्तरकाल में बाह्य त्वचा तथा लोम से सिया जाने
बाला आहार । ३. प्रक्षेप आहार- कवल आदि के प्रक्षेप से किया जाने वाला आहार ।
१७३. ओज आहार करने वाले सभी जीव अपर्याप्तक होते है। पर्याप्तक जीव लोम आहार वाले तथा प्रक्षेप आहार वाले अर्थात कबलाहारी होते हैं।'
१७४. एकेन्द्रिय जीवों, देवताओं तथा नारकीय जीवों के प्रक्षेप आहार नहीं होता। शेष संसारी जीवों के प्रक्षेप आहार होता है।
१७५. एक, दो अथवा तीन समय तक तथा अन्तर्मुहूर्त और सादिक-अनिधन-शैलेशी अवस्था से प्रारंभ कर अनन्तकाल तक जीव अनाहारक होते हैं। १. पर्याप्तिबंध के उत्तरकाल में सभी प्राणी होता तथा वह प्रतिसमयवर्ती है।
लोम आहार वाले होते हैं। स्पर्शन इन्द्रिय से, २. ये जीव पर्याप्तिबंध के बाद स्पर्शनेन्द्रिय से उमा आदि से, शीतल वायु से, पानी आदि ही आहार ग्रहण करते हैं। देवताओं द्वारा से गर्भस्थ प्राणी भी तृप्त होता है, यह सारा मन से गृहीत शुभ पुद्गल संपूर्ण काया से लोम आहार है । कवल आहार तो जब-तब परिणत होते हैं। इसी प्रकार नारकीय लिया जाता है, सदा-सर्वदा नहीं होता। वह जीवों के अशुभ पुद्गल परिणत होते हैं। शेष नियतकालिक है। लोम आहार वायु आदि के सभी औदारिक शरीर वाले लियंच और स्पर्श से निरंतर होता है। वह दृष्टिगत नहीं मनुष्य प्रक्षेप आहार करते हैं।