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दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति
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५४. पर्युषणा के ये गौण-एकार्थक नाम है --मरियसना, पष, पशु, पिस, . प्रथम समवसरण, स्थापना तथा ज्येष्ठावग्रह ।
१. परिबसना-चार मास तक एक स्थान पर रहना । २. पर्यषणा-किसी भी दिशा में परिभ्रमण का वर्जन । ३. पर्यपशमना-कषायों से सर्वथा उपशान्त रहना । ४. वर्षावास-वर्षाकाल में चार मास तक एक ही स्थान पर रहना। ५. प्रथम समवसरण-नियत वर्षावास क्षेत्र में प्रथम आगमन । ६. स्थापना-ऋतुबद्ध काल के अतिरिक्त काल की मर्यादा स्थापित करना । ७. ज्येष्ठावग्रह-चार मास तक या छह मास तक एक स्थान पर रहना।
५५. स्थापना शब्द के छह निक्षेप है-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । जिन द्रव्यों का परिभोग किया जाता है अथवा परिहार किया जाता है, वह द्रव्य स्थापना है । जिस क्षेत्र में स्थापना की जाती है, वह क्षेत्र स्थापना है तथा जिस काल में स्थापना की जाती है, बह काल स्थापना है।
५६. औदयिक मादि भावों की स्थापना भाव स्थापना है अथवा जिस भाव से जो स्थापना की जाती है, वह भाव स्थापना है।
५७. द्रव्य के स्वामिस्व, करण और अधिकरण की दृष्टि से एकत्व और पृथक्त्व के आधार पर यह भेद होते हैं । इस प्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का वर्णन करना चाहिए।
५८. काल है समय, आवलिका आदि । प्रस्तुत काल अधिकार में जो कास प्ररूपित है, मैं उसकी प्ररूपणा करूंगा । मासकल्प क्षेत्र से निष्क्रमण. वर्षावास क्षेत्र में प्राबकाल में प्रवेश तथा उसकी समाप्ति होने पर शरद् ऋतु में उससे निर्गमन-ये विषय मैं कहता हूं।
५९. मुनि प्रीष्म ऋतु में चार मास तथा हेमन्त में चार मास-इन आठ मासों में विहरण करता है । ये आठ मास समाधि के अनुसार एक अहोरात्र, पांच अहोरात्र अथवा न्यूनातिरिक्त मास हो सकते है।
६०. आषाढ महीने में मासकल्प रह चुकने के पश्चात् कारणवश वहीं वर्षावास करना पड़े तो न्यून आठ मास का ही विहरण काल होता है (क्योंकि मृगसिर से ज्येष्ठ तक का ही विहरण हआ है) 1 इसी प्रकार जहां वर्षावास बिताया है वहां से यदि कुछेक कारणों से विहार नहीं हो पाता है तो न्यून आठ मास का विहरण होता है । वे कारण हैं—मार्गों का कीचड़मय हो जाना, वर्षा का बंद न होना, गांव पर यात्रु राजा का आक्रमण हो जाना आदि ।
[ऐसी स्थिति में मृगशिर मास तक वहीं रहना होता है तब एक मास न्यून हो जाता है]
६१. आषढी पूर्णिमा तक वर्षावासयोग्य क्षेत्र न मिलने पर (उसकी गवेषणा करते-करते दिन अधिक बीत जाने पर) अथवा साधु मार्गगत हैं-घलते-चलते वर्षावासयोग्य क्षेत्र में विलम्ब से पहुंचने पर, कार्तिक पूर्णिमा के पश्चात् साधक नअत्र न मिलने पर अथवा अन्य व्यापात के कारण कार्तिक पूर्णिमा से पूर्व विहरण करने पर अतिरिक्त आठ मास का विहरण होता है। १. देखें-गाथा ६२ ।