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सूत्रकृतांग नियुक्ति करते हैं, रज्जु से बांधते हैं, लता आदि के प्रहारों से नाडित करते हैं। इस प्रकार की बहुविध प्रवृत्तियों करते हैं।
७१. शबल परमाधामिक देव पापी नैरयिकों की आंतों के "फिल्फिस' (मांस विशेष) को. इदय को. कलेजे को तथा फेफडे को बाहर निकाल देते है तथा चमी उधेड कर उन्हें कष्ट
७२. रोद्रकर्मकारी रौद्र नरकपाल नैरयिकों को विविध प्रकार के शस्त्रों-असि, शक्ति (सांग, तलवार), भाला, तोमर--भाने का एक प्रकार, शूल. त्रिशूल, सूई आदि में पिरोते
७३. पापकर्म में रत उपरोद्र नरकपाल नरयित्रों के अंग और उपांगों को तथा शिर, ऊस, बाहु, हाथ तथा पैरों को मरोड़ते हैं, तोड़ते हैं और करवत से उनको चीर डालते हैं ।
७४, काल नरकपाल मीराओं-दीर्घ धल्लिकाओं, शुंठिकाओं-भाजन विशेषों, कन्युकाओं, प्रचंडकों में तीन ताप से नारकीय जीवों को पकाते हैं तथा कुम्भी-ऊंट की आकृति वाले वर्तन और लोहे की काहियों में उनको रचकर (जीवित मछलियों की भांति) भूजते हैं।
७५. पापकर्म में निरत महाकाल नरकपाल नरयिकों के छोटे-छोटे टुकड़े करते हैं, पीठ की चमड़ी उधेड़ते हैं तथा उनको स्वयं का मांस खिलाते हैं।
७६. असि नामक नरकपाल नारकों के हाथ, पैर, करू, बाहु, सिर, पावं आदि अंगप्रत्यंगों के अत्यधिक टुकड़े करते है।' . .
७७. असिपत्रधनु नामक नरकपात नारक जीवों के कर्ण, ओष्ठ, मासिका, हाथ, चरण, दांत, स्तन, नितम्ब, ऊरू तथा बाहु का छेदन-भेदन और शाटन करते हैं।"
७८. कुम्भ (भी)---नामक नरकपाल नारकों ना हनन करते हैं तथा उमको फुम्मियों में, कलाहों में, लोहियों में- मोह के भाजन विशेष में तथा कन्दुलोहिकुंभियों--लोहमय पात्र-विशेष में पकाते हैं।
७९. बालुका नरकपाल नारकों को सफा बालुमा से भरे हुए बर्तन में 'तहतक' की आवाज करते हुए चनों की भांति भूनते हैं तथा कदम्ब पूष्प की आकृति वाले वर्तन के उपरितन में उन नारकों को गिरा कर आकाश में उछालते हैं। १. कागिणीमंसगाणि--छोटे-छोटे मांसखंश। दसवें का नाम 'असिपत्रधनु' है। (काकिणीमांसकानि---एक्षणमासबण्डानि--- ४. ये देव असिपत्र नामक वन की विकुणा सूटी. पृ.८४)।
करते हैं। नारकीय जीव छाया के लोभ से २. सीहपुग्छाणि--पीठ की चमठी (सीहपुच्छा- उन वृक्षों के नीचे आकर विश्राम करते हैं।
नित्ति--पृष्ठीयस्ता -सूटी पृ. ८४)। तब हवा के झोंकों से असिघारा की भांति ३. समवाबो में नौवें परमाघार्मिक का नाम तीखे पत्ते उन पर पड़ते हैं और वे घिद जाते 'असिपत्र' और इसमें का नाम 'धणु' है । सूनि है। (सूटी. पृ. ८४) में नाचें परमाधार्मिक का नाम 'असि' तया