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सूत्रकृतांग नियुक्ति
६. सुगति-ज्ञान और क्रिया का संतुलन । ७. हित-मुक्ति या उसके साधनों की प्राप्ति । ८. सुख-उपशाम श्रेणी में आरुष्ट होने का सामर्थ्य । ९. पथ्य----क्षायक श्रेणी में आरूढ़ होने का सामर्थ्य । १०. श्रेणी-मोह की सर्वथा उपशांत अवस्था । ११. निवृति-क्षीण मोह की अवस्था । १२. निर्वाण-केवलज्ञान की प्राप्ति ।
१३. शिवकर-शैलेशी अवस्था की प्राप्ति । बारहवां अध्ययन : समवसरण
११६. समवसरण' पारद के नाम आदि छह निक्षेप हैं। द्रव्य समवसरण के तीन प्रकार हैं सचित्त, मचित्त तथा मिश्र । क्षेत्र समवसरण वह है, जहां द्विपद-चतुष्पद आदि समवसृत होते हैं । जिस काल में जो सम्बसरण होता है, वह काल समवसरण है।
११७. भाव समवसरण है . औदयंत्र आदि भादों का समवसरण । अथवा किया वादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी, वैनायकवादी-इन चारों वादों का भेद-प्रभेद सहित आक्षेप कर जहां विक्षेप किया जाता है, वह भाव समवसरण है।
११८. जीव आदि पदार्थों का सद्भाव है-यह क्रियावादियों का कथन है। जोव आदि पदार्थों का सबभाव नहीं है-यह अक्रियावादियों का कथन है । अजान को ही श्रेयस्कर बताने वाले अज्ञानवादी हैं और विनय से ही स्वर्ग मोक्ष मिलता है ऐसा कहने वाले विनयवादी हैं ।
११९. क्रियावादियों के १८० भेद हैं । अक्रियावादियों के ८४, अज्ञानवादियों के ६७ और विनयवादियों के बत्तीस भेद हैं।
१२०, प्रस्तुत अध्ययन में इन दर्शनों द्वारा स्वीकृत सिद्धान्तों का निरूपण है। उन सिद्धान्तों के परमार्थ का निश्चय करने के लिए समवसरण अध्ययन निरूपित है।
१२१. क्रियावादी सम्यग्दृष्टि है । शेष तीनों वाद मिथ्यादृष्टि हैं। मिथ्यावाद का रयाग कर, इस सत्यवाद (क्रियावाद) को अंगीकार करना चाहिए। तेरहवां अध्ययन : याथातथ्य
१२२. तथ्य शब्द के चार निक्षेप है-नामतथ्य, स्थापनातथ्य', द्रव्यतथ्य तथा भावतथ्य । द्रव्यतथ्य है-द्रव्य का स्वभाव, स्वरूप 1
१२३. अवश्यंभावतया औदयिक आदि छह प्रकार के भावों में होना भावतध्य है । ___ अथवा आन्तरिक भावतथ्य चार प्रकार का है-जानतथ्य, दर्शनतथ्य, चारित्रतथ्य और विनयतथ्य ।
१. समवसरण का अर्थ है-एकीभाव से मिलना, एकत्र मेलापा ।