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सूत्रकृतांग नियुक्ति
३६५ चौथा अध्ययन : स्त्री-परिक्षा
५४. चौधे अध्ययन के दो उद्देशक हैं । पहले उद्देशक का प्रतिपाद्य है—स्त्रियों के साथ संस्तव तथा संलाप करने से शील की स्खलना होती है। दूसरे उद्देशक में स्खलित व्यक्ति की इसी जन्म में होने वाली अवस्था तथा कर्मबंधन का प्रतिपादन है।
५५. स्त्री शब्द के ये पांच निक्षेप है--
(१) द्रव्यस्त्री। (२) अमिलापस्त्री-स्त्रीलिंगी शब्द, जैसे--सिद्धि, शाला, माला आदि । (३) चिह्नस्त्री-चिह्नमात्र से जो स्त्री होती हैं। चिह्न है--स्तन, वेश आदि ।
अथवा जो स्त्रीवेद से शून्य हो गया है वैमा छमस्थ, केवली अथवा अन्य कोई
स्त्री वेशधारी व्यक्ति। (४) वेवस्त्री-पुरुषाभिलाष रूप स्त्रीवेदोदय ।
(५) भाबस्त्री-स्त्रीवेद का अनुभव करने वाली। ५६. पुरुष शब्द के दस निक्षेप है(१) नामपुरुष-नाम का अर्थ है--संज्ञा । जो पदार्थ पुल्लिग है----घट, पट आदि ।
अथवा जिसका नाम पुरुष हो । (२) स्थापनापुरुष-प्रतिमा आदि । (३) द्रव्यपुरुष । (४) क्षेत्रपुरुष-तद्त क्षेत्र में होने वाला पुरुष---सोराष्ट्रिक शादि। (५) कालपुरुष–जितने काल तक पुरुष वेद वेद्य कर्मों का वेदन करता है। (६) प्रजननपुरुष प्रजनन का अर्थ है-शिश्न-लिंग । लिंग प्रधान पुरुष । (७) कर्मपुरुष-कर्मकर गादि। (4) भोगपुरुष-- चक्रवती आदि । (९) गुणपुरुष-पराक्रम, धैर्य आदि गुणयुक्त पुरुष ।
(१०) भावपुरुष-पंवेद के उदय का अनुभव करने वाला।
५७. अभयकुमार, प्रद्योत, कलबाल आदि अनेक पुरुष अपने आपको शूर मानते थे । वे भी कृत्रिम प्रेम दिखाने में समर्थ तथा मायाप्रघान स्त्रियों के वशीभूत हो गए।
५६. स्त्री-संसर्ग से होने वाले दोषों का जो वर्णन प्रथम उद्देशक में है, दूसरे उद्देशक में भी उनकी पर्यालोचना कर स्त्रियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए इसका प्रतिपादन है।
५९. भुसमर्थ व्यक्ति भी स्त्रियों के चशीभूत होकर असमर्थ और अल्पसत्त्व वाले हो जाते हैं । यह प्रत्यक्ष देखा जाता है कि अपने बापको शूर मानने वाले पुरुष नारी के वशीभूत होने पर शूर नहीं रहते।
१. देखें परि. ६ कथा सं. १-३। अभयकुमार
स्वयं को बहुत बुद्धिमान मानता था।
चंठप्रद्योत को अपने पराक्रम पर गर्व था और कूलवाल को तपस्वी होने का अहं था।'