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आधारांग नियुक्ति
२९९ १४४. कोई व्यक्ति प्रस्थ' अथवा कुहब' से सभी घान्य-कणों को मापकर उनको अन्यत्र प्रक्षिप्त करे, वैसे ही यदि कोई साधारण वनस्पति के जीवों को प्रस्थ आदि से माप कर अन्यत्र प्रक्षिप्त करे तो अनन्त लोक भर जाएं।
१४५. जो पर्याप्तक बादर निगोद है, वे संवर्तित लोक प्रतर के असंख्येय भाग प्रदेश राशि जितने परिमाण वाले हैं शेष तीन अपर्याप्तक बादर निगोष, अपर्याप्तक सूक्ष्म निगोद तथा पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद- ये प्रत्येक असंख्येय लोकाकाशप्रदेश परिमाण जिसने हैं। साधारण वनस्पति के जीव उनसे अनन्तगुना हैं।
१४६,१४७. वनस्पति के फल, पत्र, पुष्प, नल, कन्द आदि से निर्वतित भोजन, उपकरण-व्यजन, अर्गला आदि, शयन-मंचिका, पथक आदि, आसन-आसंदिका आदि, यान-पालकी आदि, युग्म–शकट आदि, आवरण-फलक आदि, प्रहरण लकड़ी आदि तथा अनेक प्रकार के शस्त्र, आतोच . पह, भेरी आदि, काष्ठकर्म - प्रतिमा, स्तंभ, तोरणद्वार आदि, गंधांग-प्रियंगू, देवदारु, ओशोर आदि, वस्त्र - वल्कलमय, कार्यासमय आदि, माल्ययोगविविध पुष्पों की मालाएं, छमापन-इंधन से जलाना, भस्मसात् करना, चितापन-सर्दी के अपनयन के लिए काठ आदि जलाकर अग्नि तपमा, तेल विधान-तिल, अतसी, सरसों आदि का सैल, उद्योत-वर्ती, तण, चडाकाष्ठ आदि से प्रकाश करना । वनस्पति के ये उपभोग-स्थान है। इन सभी में बनस्पति का उपयोग होता है।
१४. मनुष्य इन कारणों से वनस्पति के बहुत जीवों की हिंसा करते हैं। वे अपने सुख के लिए दूसरे जीवों के दुःख की उदीरणा करते हैं ।
१४९. कैंची, कुठारी, हंसिया, दांती, कुदाल, बच्छि, परशु---सामान्यत: ये वनस्पति के शस्त्र है। इनके साथ हाथ, पैर, मुख तथा अग्नि-ये भी शस्त्र हैं ।
१५७. वनस्पति के कुछ स्वकाय शस्त्र होते हैं, कुछ परकाय शस्त्र तथा कुछ उभय शस्त्र होते हैं। ये सारे द्रव्यशास्त्र हैं । भावशस्त्र है-असंयम ।
१५१. बनस्पति के शेष द्वार पृथ्वीकाय की भांति ही होते हैं। इस प्रकार यह वनस्पतिकाय की निर्मुक्ति प्ररूपित है।
१५२. जितने द्वार पृथ्वीकाय के लिए कहे गए हैं, उतने ही द्वार प्रसकाय के लिए हैं। भेद केवल पोच विषयों में है--विधान, परिमाण, उपभोग, शस्त्र तथा लक्षण
१५३. सजीव दो प्रकार के हैं-सम्धिस तथा गतित्रस । लब्धित्रस दो है-तेजस्काय और बायुकाय । प्रस्तुत में उनका (तेजो वायु का) प्रसंग नहीं है।
१५४. गतिरस चार प्रकार के हैं-नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव । इन चारों के दो-दो प्रकार है-पर्याप्त तथा अपर्याप्त।
पल
का
एक प्राचीन २. कुडव-बारह मुद्री धान का एक परिमाण ।
१. प्रस्थ-बत्तीस
परिमाण ।