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सूचकृतांग नियुक्ति
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ठिति-अणुभावे बंधण-निकायण-निधत्त'-दीह-हस्सेस। संकम-उदीरणाए, उदए' वेदे उपसमे य॥ सोऊण जिणवरमतं, गणधारी कातु तक्खमोवसमं । अज्झवसाणेण कतं, सुमिण' तेण सूयग ।। वइजोगेण पभासितमणेगजोगंधराण* साधूर्ण । तो वइजोगेण कतं, जीवस्स सभावियगुणेहि ।। 'अक्खर-गुण-मतिसंघातणाए कम्मपरिसाढणाए य । तदुभयजोगेण कयं, सुत्तमिणं तेण सूयगउँ" ।। सुत्तेण 'सूइत त्ति य", अत्था तह सूइता य जुत्ता य । जो" बहुविधप्पजुत्ता, ससमयजुत्ता" अणादीया ।।
प्रथम श्रुतस्कंध दो चेव सुतक्खंधा, अग्झयणाई हवंति" तेवीस । 'तेत्तीस उद्देसा',५ आयारातो दुगुणमेतं" । निक्लेवो गाधाए", चउम्बिहो छम्बिहो य सोलसस ।
निक्लेवो उ८ 'सुम्मि य१६, खंधे य चउविहो होइ ।। २४. ससमय परसमयपरूवणा य नाऊण बुज्मणा चेव ।
'संबुद्धस्सुवसग्गा, थीदोसविवज्जणा चेव" ।। १. निकायं निहतं (अ), निहत्ति (क)। १५. तेत्तीसुद्देसणकाला (क,टी), सेत्तीस उद्देस २. हुस्से य (चू)। ३. ४(ब)।
१६. ०णमंग (टी) । इस गाथा के बाद सूत्रकृतांग ४. पूत (टी)
चूणि के अनुसार एक नियुक्तिगाथा और होनी ५. सुत्तगर्ड (च)।
चाहिए । चूणि में उसकी व्याख्या तो मिलती ६. वयजो (द)।
है लेकिन यह गाथा किसी भी आदर्श तथा ७. जोगकरणाण (चू)।
टीका में प्राप्त नहीं है। मुनि पुण्यविजयजी ५. वयत्रो (टी)।
ने रिक्त स्थान देकर यहां २० का क्रमांक ९. गुणेण (अ,ब,क,टी) 1
लगाया है । टीकाकार ने इस गाधा के बारे १०. सूत्तगर (टी), सुतकर्ड (च)।
में कोई ऊहापोह नहीं किया है। संभव है ११. मुत्तिया चिय (टी), सुप्तपच्चिय (अ,ब) ।
कालांतर में किसी कारण से यह सुप्त हो गई १२. तो (क)।
हो। १३. एय पसिद्धा अणा (टी), पया ५ सिद्धा १७. गाहाए (टी)। अणा (क)।
१८. य (क.चू,टी)। १४. व हंति (क,टी)।
१९. सुयम्मी (क)। २०. अप्रति में गाथा का उत्तरार्ध नहीं है।