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सूत्रकतांग नियुक्ति ३३. पंचण्हं संकोगे, अण्णगुणाणं च चेयणादिगुणो'।
पंदियठाणाणं, न अण्णमुणितं मुणति अन्नो ॥ को वेदेई अकयं ?, कयनासो पंचहा गई नस्थि ।
देव-मणुस्सगयागइ, बाइस्सरणादियाणं । ३५. नई अफलपोवनिश्चित कालफलत्तमिहं अदुमहेऊ । नादुद्ध पोवदुद्धत्तणे अगावितणे हेऊ ।।
___ समयस्स निग्नुत्ती समत्ता पठमे संबोधि' अणिच्चयाय वितियम्मि माणवज्जणता । ___ अहिगारो पुण भणिओ, तहा तहा बहुविहो तत्य ।।
उद्देसम्मि य ततिए, मिनछत्तचित्तस्स" अवचयो भणितो।
वज्जेयव्यो य सया, सुहप्पमादो" जतिजणेणं ।। ३८. वेयालिम्मिय वेयालगो य वेयालणं वियालणियं"।
तिम्नि वि चउक्कगाई, वियालो एत्य पुण जीयो ।
१. वेषणाइ० (अद)।
माणि..."उद्देशार्थाधिकारं तु स्वत एव २. जाईसरणा (ब,टी), सरणाविठाण (अद)। नियुक्तिकार उत्तरत्र वक्ष्यति ।' फिर भी ३. अफलत्तमनिच्छय (द), अफलधेव (ब)। यहां पहले कौनसी गाथा होनी चाहिये यह ४. गोवुद्ध (अ)।
निर्णय करना कठिन है क्योंकि अन्य ५. गाया ३४,३५ चूणि में अनुपलब्ध है। निर्पक्तियों में कहीं उद्देशक के विषय-वस्तु
टीकाकार ने 'अधुना नियुक्तिकारो' तथा वाली गाथाएं बाद में हैं तो कहीं पहले हैं। 'निर्मुक्तिकदाह' ऐसा उल्लेख किया है । ये हस्त-आदर्शों में गाथाओं का क्रम टीका का दोनों गाथाएं सभी आदर्शों में मिलती हैं। ये संवादी है । हमने चूणि के अनुसार गाथाओं गाथाएं नियुक्ति की प्रतीत होती है।
का क्रम रखा है। ६. संबोहो (अ,ब,द,क,टी)। ७. बीर्याम्म
१०. अन्नाणस्त्रियस्स(ब), अन्नाणचियस्स(क,टी)। ८. द्वितीय अध्ययन में भी नियुक्ति गाथाओं में ११.०प्पमाओ (अ,ब,द,टी)।
क्रमव्यत्यय है। चूणि में सर्वप्रथम उद्देनकों १२. वेयालियं ति (क), वेदालियम्मि (८); के विषय-वस्तु का निरूपण फरने वाली बेतालियर्याम्म (च) द आदर्श तथा चूणि में गाथाएं हैं तथा टीका में वैतालीय अध्ययन सभी स्थानों पर 6 का प्रयोग हुआ है। से सम्बन्धित गाथाएं हैं । टीकाकार स्वयं इस वेदालीय और बेतालीय ये दोनों पाठ शुद्ध बात का उल्लेख करते हुए कहते हैं- हैं। 'तत्राध्ययनार्याधिकार प्रागेव नियुक्तिकारेणा- १३. चियालणगं (अ)