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नियुक्तिपंचक १३६. साधारण वनस्पतिकायिक अर्थात् अनन्तकायिक जीवों का साधारण लक्षण यह हैजिनमें आहार तथा प्राण-अपान का महण एक होता है, नेहा नाति ही है। (एक जीव के आहार करने पर सभी जीवों का आहार संपन्न हो जाता है। एक जीव के उच्छवास-नि:श्वास लेने पर सभी जीवों का उच्छ्वास-निःश्वास हो जाता है-यह इसका आशय है ।)
१३७, साधारणशरीरी वनस्पति का एक जीव उच्छ्वास-निःश्वास योग्य पुद्गल को ग्रहण करता है, वही ग्रहण अनेक साधारणशरीरी वनस्पति के जीवों का होता है तथा जो अनेक जीवों का ग्रहण होता है, यही एक जीव का ग्रहण होता है।
१३८. योनिभूत-योनि अवस्था को प्राप्त बीज में प्राक्तन बीजजीव अथवा अन्य बीजजीव आकर उत्पन्न होता है। जो जीव मूल- जड़रूप में परिणत होता है वही प्रथम पत्ते के रूप में परिणत होता है।'
१३९. जिसके मूल, कन्द, त्वक्, पत्र, पुष्प, फल आदि को तोड़ने से पक्राकार समान टुकड़े होते हैं, जिसका पर्वस्थान चूर्ण-रजों से व्याप्त होता है अषया जिसका भेदन करने पर पृथ्वी सदृष्य समान भंग होते हैं, वह अनन्तकाय वनस्पति होती है।
१४०. जिसके पत्ते क्षीरमुक्त अथवा क्षीरशून्य तथा गूळ शिरामों वाले होते हैं, जिनकी गिराएं अलक्ष्यमाण होती हैं, जिनके पत्रा की संधि दृग्गोचर नहीं होती. वे अनन्तजीवी होते हैं। . १४१. शैवाल, कच्छभाणिक, अत्रक, पनक, किण्य, हठ (हड या हुक)-~-ये अनेक प्रकार के अनन्तजीवी जलरह हैं । इसी प्रकार दूसरे भी अनेक प्रकार हैं।
१४२, प्रत्येकशरीरी वनस्पति जो एक, दो, तीन, संख्येय अथवा असंख्येय जीवों से परिगृहीत होती है, उसके शरीर-संघात चक्षुग्राम होते है।
१४३. अनन्तत्रीय वाली बनस्पति के एक, दो, तीन, संख्येय अथवा असंख्येय शरीर दृग्गोचर नहीं होते। दादर निगोद के अनन्त जीवों के शरीरपिट ही दृश्य होते हैं । (मूक्ष्मनिगोद के अनन्तजीबों का संघात भी दृश्य नहीं होता ।) १. साधारण-समानं-एक, धारणम्-- वाला बीजजीव मूल आदि नाम-गोत्र कर्म
बंगीकरणं शरीराहारादेर्येषां ते साधारणाः । का बंध कर पुनः उसी बीज में आकर जन्म (आटी १३९)
ले लेता है, परिणत हो जाता है। अथवा २. जो बीज योनि-अवस्था को प्राप्त है, उसमें पृथ्वीकायिक आदि का जीव उस मोनिभूत
उत्पन्न होने वाला जीव प्राक्तन बीजजीष भी बीज में आकर जन्म लेता है, मूल- जड़ हो सकता है अथवा दूसरा बीम भी हो आदि के रूप में परिणत होता है और वही सकता है। प्राक्तन इस अर्थ में कि जिस प्रथम पत्र के रूप में परिणत होता है। इस बीजजीव ने अपना आयुष्य पूर्ण कर बीज का प्रकार मूल और पत्ते का कर्ता एकही जीव परित्याग कर दिया, उस बीज को पानी, होता है। हवा आदि का संयोग मिलने पर, वही पहले