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दशवेकालिक निर्मुक्ति
३४२.
३४३.
७.
३४४.
अट्ठविकम्मरोगाउरस्स, जीवस्स' 'तह चिच्छिाए"। धम्मे रती अधम्मे अरती, गुणकारिणी' होति ॥
सज्झाय-संजम तवे, बेयावच्चे य झाणजोगे य । जो रमति नरमति, 'असंजमम्मि सो पावए सिद्धि ।।
तम्हा धम्मे रतिकारगाणि अरइकारगाणि य" अहम्मे । ठाणाणि ताण जाणे, जाई भणिताणि अभयणे ॥ बक्कानिज्ती समता
३४५. अधिगारो पुष्युत्तो, चतुव्विहो बितिय लियज्झयणे । सेसाणं दाराणं, अहमकर्म घोसणा होति ॥
३४६. दवे" सरीरभविओ, भावेण य" संजतो इहं तस्स । ओगहिता पग्गहिता, विहारवरिया" मुणेतवा || ३४७. अणिएयं पतिरिक्कं अण्णातं सामुदाणियं उंछ । अप्पrast अकलहो, बिहारचरिया इसिपसत्या || विविचरियानिज्जुती समता
१. जीअस्स (हा ) |
२. ततिग० ( अचू ), तह तिमि० (हा ) । ३. ० कारिया ( अ, ब, रा), कारिता ( अ ) । ४. नो (हा)
५. अस्संजमम्मि सो बच्चई सिद्धि (हा,अ.न.
= (ET) !
रा) ।
६. धम्मम्मि ( जिबू) |
८. ताई ( अ, ब, हा) । ९. फासणा (रा. हा भा) ।
यह गाथा विवादास्पद है। टीकाकार ने इसके बारे में 'एतदेवाह भाष्यकार: ' ऐसा उल्लेख किया है । अत: इसे निर्मुक्ति के क्रम में नहीं जोड़ा है। किन्तु दोनों चूर्णिकारों ने 'इमा उबग्घातनिज्जुलि पढभगाहा' ऐसा
उल्लेख किया है। यहां चूर्णिकार का मत सम्यक् प्रतीत होता है। इसके पश्चात् दोनों चूणियों में 'दो सुस्तफासिया गाधाओ सुत्ते देव मणिहिति' ऐसा उल्लेख मिलता है । मुनि पुष्यविजयजी के अनुसार ये दो गाथाएं 'उसे निदे से...' तथा 'कि कह विहं सुखफासिय है। लेकिन उनका मत संगत नहीं लगता। यहां से दो गाथाएं दब्बे सरीर... ( ३४६) अणिएतं ( ३४७) सूत्रस्पर्शिक होनी चाहिए क्योंकि इन दोनों गाथाओं में सूत्र के विषय का ही संक्षिप्त विवेचन है।
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१०. दष्व ( अ ) । ११. उ ( रा ) ।
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१२. उम्महिया ( अ, हा) | १३. ० चरिता ( अ ) |