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निर्युक्तिपंचक
के अनुसार ये प्रथम अध्ययन के अधिकार हैं)।'
३५. कहीं शिष्यों के पूछने पर और कहीं न पूछने पर भी आचार्य शिष्यों के हित के लिए अर्थ का निर्देश करते हैं। शिष्यों के पूछने पर होने वाला निर्देश अधिक लाभप्रद और विस्तृत होता है ।
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३६. नाम, स्थापना, द्रव्य और भावये धर्म के चार निक्षेप हैं। इनके भेदों का यथाक्रम से वर्णन करूंगा ।
३७. धर्म के चार प्रकार है- द्रव्यधर्म, अस्तिकायधर्म प्रचारधर्म और भावधर्मं । द्रव्य के जो पर्याय हैं, वे उस द्रव्य के धर्म हैं ।
३८. धर्मास्तिकाय अस्तिकाय धर्म है और प्रचारधर्म विषयभ्रमं है। भावधर्म के तीन प्रकार हैं-लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तर । लौकिक धर्म अनेक प्रकार का है।
३९. गम्य, पशु, देश, राज्य, पुरवर, ग्राम, गण, गोष्ठी और राजये लौकिक धर्म है । afrsों का धर्म कुप्राणचनिक धर्म । पर सावध होने के कारण जिनेश्वर भगवान द्वारा प्रशंसित नहीं है।
४०. लोकोत्तर धर्म दो प्रकार का है-श्रुत धर्म और चारिव धर्म । श्रुत धर्म स्वाध्याय रूप है। क्षमा, मुक्ति आदि दश श्रमण धर्मो का समावेश चारित्र धर्म में होता है ।
४१. 'मंगल' शब्द के चार निक्षेप हैं—नाममंगल, स्थापनामंगल, द्रव्यमंगल और भावमंगल । परिपूर्ण कलश आदि द्रव्यमंगल है। धर्म से सिद्धि प्राप्त होती है, इसलिए वह भावमंगल है |
१. हाटी ५० १९ एवमेतान्यकाविकानि, अर्थाधिकारा एवान्ये |
१. आहार एवणा - तीनों एषणाओं से युक्त | २. गोचर - गाय की तरह चरना- घर-घर जाकर बहार लेना ।
३. त्वस्व की भांति असार भोजन का सूचक ।
४. संछ- अशात पिंड का सूचक ।
५. मेष- अनाकुल रहकर एषणा करने का सूचक ।
६. जोंक - अनषणा में प्रवृत्त दायक को मृदुभाव से निवारण करने का सूचक । ७. सर्प - गोचर में प्रविष्ट मुनि की संयम के प्रति एकवृष्टि होने का सूचक । ८. व्रण-क्षण पर लेप करने की भांति भोजन करने का सूचक |
९. अक्ष अक्ष पर लेपन की भांति संयमभार निर्वहन के लिए भोजन करने का सूचक । १०. इषु तीर लक्ष्य वैधक होता है। मुनि के लिए लक्ष्यवेध के लिए भोजन करने का सुचक ।
११. गोला - लाख का गोला - गोचराग्रगत मुनि के मितभूमि में स्थित रहने का
सूचक ।
१२. पुत्र-पुत्रमांस की भांति अस्वादवृत्ति से भोजन करने का सूचक ।
१३. उदक- - दुर्गन्धयुक्त पानी को पीना केवल तृषापनयन के लिए यह अस्वादवृत्ति का सूचक ।
ये सभी उदाहरण अर्थ की निकटता के कारण दुमपुष्पिका अध्ययन के एकार्थक माने गए हैं।