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आचारोग निमुक्ति
२१५ १४. सूक्ष्म अनन्तकाय वनस्पति का प्रस्थ के १८३.
मूल शब्द का छह प्रकार से निक्षेप। दृष्टांत द्वारा परिमाण-निर्देश ।
भावमूल के प्रकारों का निर्देश। बाबर निगोब के परिमाण का निर्देश।
स्थान शब्द के पन्द्रह प्रकार से निक्षेप । १४६,१४७. वनस्पति के उपभोग के प्रकार।
पंच इन्द्रिय-विषयों में राग-द्वेष से संसार की १४८. उक्त उपभोग के कारणों से बनस्पति' की
वृद्धि। हिसा।
१८७. वृक्ष की उपमा से संसार के मूल का १४९,१५०. वनस्पतिकाय के शस्त्र ।
निर्देश । पृथ्वीकाय की भांति अन्य द्वारों के निर्देश १८. अष्ट कर्मों का मूल मोहनीय कर्म, उसका का कपन ।
मूल काम तथा काम का मूल संसार । त्रसकाय के द्वारों का निर्देश ।
१८९. मोह के भेद । १५३-५५. प्रसकाम के भेद-प्रभेद ।
संसार का मूल कर्म, कषाय, स्वजन आदि । १५६,१५७. सकाय के लक्षण ।
कषाय शब्द के निक्षेप । १५८,१५९. सकाय जीवों का परिमाण ।
१९२ संसार शब्द के निक्षेप । १६०-६२. सकाय की वेदना, उपभोग तथा हिंसा के १९३,१९४, कर्म शब्द के निक्षेप तथा भेद । कारणों का निर्देश।
१९५,१९६. संसार से मुक्ति के लिए कर्म, कषाय तथा पृथ्वीकाय की भांति ही अम्मद्वारों के कथन
स्वजनों से मोह के परिस्थाग का निर्देश । का निर्देश ।
१९७. संयम में अरति का मूल कारण-अध्यारम१६४. वायुकाय के द्वारों का कथन ।
दोष । वायुकाय के भेद ।
तीसरा अध्ययन : शीतोष्णीय बादर वायुकाय के पांच भेद । १६७. उपमा द्वारा वायु में जीव के अस्तित्व की १९८,१९९. शीतोष्णीय अध्ययन के उद्देशकों की विषय सिद्धि।
वस्तु का संक्षेप में कथन ।
शीत और उष्ण शब्द के निक्षेपों का कथन । १६८.
२००. वायुकाय का परिमाण । १६९, वायुकाम के उपभोग के प्रकार।
२०१. द्रव्य और भाव शीत तथा उष्ण का कथन । १७०,१७१. वायुकाय के शस्त्र ।
२०२,२०३. उष्ण परीषह तथा शीत परीषह के भेद । १७२. पृथ्वीकाय की भांति अन्य द्वारों के कथन २०४.
उष्ण तथा शीत परीषह का स्वरूप । का निर्देश।
२०५, शीत और उष्ण की दृष्टि से प्रमाद की
व्याख्या। दूसरा अध्ययन : लोकविजय
२०६. उपशांत शम्ब के एकार्थक । लोकविजय अध्ययन के उद्देशकों की विषय- २०७. संयम सीतघर के संपान तथा असंयम बस्तु का निर्देश ।
उष्ण । १७४. लोक, विजय, गुण, मूल तथा स्थान आदि २०६. निर्वाण-मुख के एकार्थक। शब्दों के निक्षेप की प्रतिज्ञा ।
तीन कषाय का फल । द्वितीय अध्ययन के नाम का निर्देश । २१०. द्रव्य और भाव परीषह-कयन का १७६,१७७. लोक शब्द के निक्षेप ।
अभिप्राय । १७८. भावलीक के विजय का फल ।
२११. शीत और उष्ण परीषह-सहन करने तथा १७९. गुण शब्द का पंद्रह प्रकार से निक्षेप !
काम का सेवन न करने का निर्देश । १८०८२. द्रश्यगुण, क्षेत्रगुण आदि की व्याख्या । २१२. शानी और अज्ञानी की पहचान ।