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उत्तराम्पयन नियुक्ति
१९६. नोवतकरण दो प्रकार का है-गुणकरण और योजनाकरण । तपःकरण और संयमकरण- करण हैं। मन, बचन, काया की प्रवृत्ति को आस्मा के साथ योजित करना योजनाकरण है। सत्यमनोयोग आदि चार प्रकार का मनोयोग, सत्यवचन आदि चार प्रकार का बचनयोग, औदारिक काययोग आदि सात प्रकार का काययोग-ये पन्द्रह योजनाकरण हैं।
१९७. कार्मणशरीरकरण के अनेक भेद है। उसमें आयुष्यकरण असंस्कृत है-वह उत्तरकरण के द्वारा भी साधा नहीं जा सकता। प्रस्तुत अध्ययन में उसी का प्रसंग है। अत: अप्रमाद कोही परित्र का विषय बनाना चाहिए ।
१९८. द्वीप के दो प्रकार हैं-व्यद्वीप और भाववीप । दोनों के दो-दो भेष है-आश्वासद्वीप और प्रकाशद्वीप।
१९९. आश्वासद्वीप के दो भेद हैं-संदीनवीप' और असंदीनद्वीप।' प्रकाशदीप के दो भेद है-संयोगिम तथा असंयोगिम'। यह दम्पतीप की अपेक्षा मे है। भावद्वीप की अपेक्षा से आश्वासदीप और प्रकाशद्वीप प्रत्येक के दो-दो प्रकार है।
पांचवां अध्ययन : अकाममरणीय
२००, काम शब्द के चार निक्षेप हैं तथा मरण शब्द के छह निक्षेप हैं। काम की व्याख्या पहले (दशवकालिक के दूसरे अध्ययन में) की जा चुकी है। प्रस्तुत में अभिप्रेतकाम - इच्छाकाम का प्रसंग है।
२०१. मरण के ये छह निक्षेप हैं -(१) नाममरण (२) स्थापनामरण (३) द्रव्यमरण (४) क्षेत्रमरण (५) कालमरण (६) भावमरण ।
२०२. द्रव्य का मरण द्रव्यमरण है । जैसे-कुसुम्भ आदि का मरण अर्थात् कुसुम्भ का रंगने के सामर्थं का अभाव, उसका मरण है । भावमरण है आयुष्य का कय । उसके तीन प्रकार है-(१) पोषणसर्व प्राणियों का होने वाला मरण, (३) भवमरण-उस-उस भव में होने वाला मरण, (३) तद्भवमरण -उस भव में मरकर पुनः उसी भव में उत्पन्न होना । प्रस्तुत प्रसंग में मनुष्य मविक मरण का अधिकार है।
२०३-२०४. अब हम मरण के विभागों की प्ररूपणा, आयुष्यकर्म का अनुभाव, आयुष्यकम के प्रदेशान, मरणों के कितने प्रकार से प्राणी मरता है? प्राणी एक समय में कितनी बार मरता है ? एक-एक मरण में कितनी बार मरता है ? वक्ष्यमाण मरण-भेदों में एक-एक में कितने भागों में भरण होता है ? संसार के सभी जीवों के ये मरण निरन्तर होते हैं या व्यवहित (सान्तर) होते हैं ? एक-एक मरण का कालमान कितना है? आदि का वर्णन करेंगे।
१. द्वीप-जो जल प्रवाह में नष्ट हो जाता है, ३. संयोगिम--तैल, वर्ती, अग्नि के संयोग से वह संदीप द्वीप है।
प्रकाश करने वाला। २. असंदीन द्वीप-वह द्वीप, जो जल-प्रदाह में ४. बसंयोगिम-सूर्य का बिम्ब बादि।
नष्ट नहीं होता।