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नियुक्तिपंधक
और तद्व्यतिरिक्त
४२४. समुद्रपाल की आयु का बेदन करता हुआ भाव समुद्रपाल होता है। समुद्रपाल से समुत्थित होने के कारण इस अध्ययन का नाम समुद्रपालीम है ।
४२५-३५. चंपा नगरी में पालित नाम का सार्थवाह रहता था। वह वीतराग भगवान् महावीर का अनुयायी था । वह सामुद्रिक झ्यापारी पा। एक बार वह गणिम-सुपारी भादि तया धरिम--स्वणं आदि वस्तुओं से भरे जहाज को लेकर पिहूं नाम के नगर में पहुंचा और वहां वस्तुओं का क्रय-विक्रय करने लगा। एक वणिक ने अपनी पुत्री के साथ उसफा विवाह कर दिया । वह अपनी पत्नी को लेकर स्वदेश की ओर चल पड़ा । उस वणिकपुत्री अर्थात् पालित की पत्नी ने समुद्र-मार्ग में ही एक एन हो जन्म दिगा ! वन स मन्दर र मनोरनी था । उसका नाम समुद्रपाल रखा गया । यह पालिन श्रावक सकुशल अपने घर पहुंचा । शिशु समुद्र पांच धायों के बीच में बडा होने लगा। उसने बहत्तर कलाएं सीखीं। वह न्याय-नीति में निपुण हो गया । यौवन में प्रवेश कर अत्यधिक सुन्दर दीखने लगा । उसके पिता पालित ने उसका विवाह रूपिणी नामक कन्या से कर दिया । वह स्त्रियों के चौसठ गुणों से मुक्त तया देवांगना सदृश रूपवती थी। जैसे दोगुन्दक देव क्रीडारत रहते हैं, वैसे ही समुद्रपाल अपनी पत्नी रूपिणी के साथ पुंडरीक भवन में कीड़ारत रहता था। वह सदा नौकरों से घिरा रहता था। एक बार वह अपने पत्नी के साथ भवन के झरोने में बैठा था । उसने राजमार्ग पर राजपुरुषों द्वारा एक वष्य को ले जाते देखा । उसके पी संकटों व्यक्ति चल रहे थे । उसको देखते ही सम्यक्त्व और ज्ञान के धनी कुमार ने सांसारिक दुःखों से भयभीत होकर सोचा-हाय ! यह निकृष्ट पापकर्मों का प्रत्यक्ष फल है। संबोध प्राप्त कर कुमार समुद्रपाल अनुत्तर वैराग्य से संपृक्त हो गया। प्रख्यात यश-कीति वाले उस कुमार ने मातापिता की आज्ञा लेकर अभिनिष्क्रमण कर प्रव्रज्या ग्रहण कर सी।
४३६. अनेक वर्षों तक तपश्चर्या द्वारा क्लेशों का क्षय करके उसने उस स्थान को प्राप्त किया, जिस स्थान को प्राप्त कर कोई शोक नहीं रहता।
बावीसवां अध्ययन : रथनेमीय
४३७,४३८. रचनेमि शब्द के चार निक्षेप है-नाम, स्थापना, व्य और भाव । द्रष्य के दो भेद है-आगमतः, नो-आगमतः । नो-आगमत; के तीन प्रकार है-शशरीर, भव्यशरीर और तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त के तीन प्रकार है-एकभविक, बदायुष्क और अभिमुखनामगोत्र ।
४३९. रयनेमि नाम, गोत्र का वेदन करने वाला भावरथनेमि होता है। उसी से समुस्थित यह अध्ययन रथने मीय कहलाता है ।
४४०-४४. शौर्यपुर नगर में समुद्रविजय नाम का राजा था । उसके सर्वाग सुन्दर शिवा नाम की महारानी थी। उनके चार पुत्र हुए-अरिष्टनेमि, रथनेमि, सत्यनेमि और हडनेमि । अरिष्टनेमि बावीसवें तीर्थकर हए तथा रचनेमि और सत्यनेमि प्रत्येकबुद्ध हुए। रथ नेमि चार सौ वर्ष गृहस्थावास में रहे । एक वर्ष छमस्य पर्याय में और पांच सौ वर्ष केवली पर्याय में रहे। उनका समप्र आयुष्य ९०१ वर्ष का था । राजीमती का भी कासमान इतना ही जानना चाहिए ।