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नियुक्तिपंचक
१३२. वनस्पतिकाय ने दृष्टान्त देते हुए कहा कि एक विशाल वृक्ष पर बनेक पक्षी सुखपूर्वक रह रहे थे। उसी वृक्ष के निकट से एक लता उठी और वह वृक्ष के लिपटती हुई ऊपर तक चई गई। एक बार एक सपं उस लता के सहारे ऊपर चढ़ा और पक्षियों के अंडों को खा गया। तब शेष पक्षियों ने कहा-'हम इस वृक्ष पर रहते थे। यह निरुपद्रव था। मूल से लता उठी तब यह धारण देने वाला वृक्ष भी भय का कारण बन गया ।'
१३३. सकाय ने दृष्टान्त देते हुए कहा—'सेना से क्षुब्ध होकर नगर के भीतरी लोग बाहर रहने वालों को बाहर ही रोक रहे थे। ओ मातंगो ! तुम अब दिशा की शरण लो। ठीक है, जो नगर शरणस्थल या वही भय का स्थान बन गया।'
१३४. जहां का राजा पोर हो और पुरोहित भंडक हो वहां नागरिकों को दिशाओं की ही शरण लेनी चाहिए क्योंकि शरण स्वयं भय स्थान बन रहा है ।
१३५,१३६. हे मित्र ! उदित होते हुए सूर्य का, चैत्य-स्तूप पर बैठे कौए का तया भीत पर आए आतप का सुख की वेला में पता नहीं चलता । (इस कप ब्राह्मणा: । :: दुःय प्रस्ट किया। पति के विरह में उसे रात भर नींद नहीं आई।) पुत्री बोली-'मां ! तुमने ही तो मुझे कहा था कि आए हुए यम की अवमानना मत करना। पिता का यक्ष ने हरण कर लिया है । अब तुम दूसरे पिता की अन्देषणा करो।
१३७. जिसको मैंने नय मास तक गर्भ में धारण किया, जिसका मैंने मल-मूत्र धोया, उस पुत्री ने मेरे भर्सा का हरण कर लिया । धारण मेरे लिए मशरण हो गया।
१३. तुमने स्वयं ही तो वृक्ष रोपा और तालाब खुदवाया। अब देव के भोग का अवसर आया तब क्यों चिल्ला रहे हो ?
१३९. आर्य आषाढ़ आगे चले 1 मार्ग में उन्होंने एक अलंकृत-विभूषित साध्वी को देखकर कहा-'अरे ! तुम्हारे हाथों में कटक हैं, कानों में कुंडल है, आंखों में अंजन आज रखा है, ललाट पर तिलक है। हे प्रवचन का उड्डाह कराने वाली दुष्ट साध्वी ! तूं कहाँ से आई है ?' वह बोली
१४०. हे आर्य! तुम दूसरों के राई और सर्षप जितने छोटे दिलों-दोषों को देखते हो किंतु अपने बिरुब जितने बड़े दोषों को देखते हुए भी नहीं देखते ।
१४१. तुम श्रमण हो, संयत हो, ब्रह्मचारी हो, मिट्टी के लेखे और कंपन को समान समझने वाले हो, तुम वायु की भांति अप्रतिबद्धविहारी हो । ज्येष्ठार्य ! आपके पात्र में क्या है, बताएं। तीसरा अध्ययम : चतुरंगीम
१४२. एक शब्द के सात निक्षेप है-नाम, स्थापना, व्य, मातृकापद, संग्रह, पर्यव और भाव ।
१४३. चतुर् शब्द के सात निक्षेप है-नाम, स्थापना, द्रश्य, क्षेत्र, काल, गणना और भाव। यहां गणन संख्या का अधिकार है।
१w. अंग शरद के पार निक्षेप है-नामांग, स्थापनांग, दम्यांग और भावांग ।