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नियुक्तिपंचक
७७. उदाहरण (आहरण) के चार दोष हैं-अधर्मगुप्त, प्रतिलोम, आरमोपन्यास और दूरुपनीत । अधर्मयुक्त-उदाहरणदोष में नलदाम का उदाहरण है।'
७८. प्रतिलोम-उदाहरणदोष में अभयकुमार का उदाहरण है। अभयकुमार ने राजा प्रद्योत का हरण क्रिया और गोपेन्द्र (अथवा. गोविन्द) वाचक ने परपक्ष का निवर्तन किया।
७९. आत्मोपन्यास-उदाहरणदोष में पिंगल स्थपति का उदाहरण है, जिसको तालाब फटने के प्रसंग में जीवित ही गड़वा दिया था। दुरुपनीत-उदाहरणदोष में मत्स्य-वध भिक्षुक का उदाहरण
८०. उपन्यास-उदाहरणदोष के चार प्रकार हैं--तद्वस्तु-उपन्यास, अन्य वस्तु-उपन्यास, प्रतिनिभ-उपन्यास और हेतु-उपन्यास । इनके उदाहरण ये हैं .
८१. तद्वस्तु-उपन्यास में व्यक्ति सब जगह धूमकर अपूर्व अर्थ का कथन करता है । तदन्मवस्तु-उपन्यास में अन्यत्व में एकत्व का प्रतिमास होता है। (जैसे 'अन्य: जीव: अन्यच्च शरीरम'यहां अन्य पाब्द साधारण है, अतः जीव और शरीर में एकत्व है।)
८२. प्रतिनिभ-उपन्यास में तुम्हारे पिता ने मेरे पिता से एक लाख मुद्राएं कर्ज में ली थी।'
हेतु उपन्यास-तुम यह यव (धान्य विशेष) क्मों खरीद रहे हो ? उत्तर दिया-क्योंकि यव मुफ्त नहीं मिल रहे हैं।
८३. अथवा हेतु के चार प्रकार हैं-यापक, स्थापक, व्यंसक और लूषक ।
४. यापक हेतु का उदाहरण - एक उद्घामिका (व्यभिचारिणी) महिला ने अपने पति को उष्ट्र लिण्डिका (ऊंट की मौंगणी) देकर व्यापार करने के लिए भेजा।"
स्थापक हेतु का उदाहरण-- एक परिवाजक ने लोक का मध्य भाग बताया।
८५. ध्यंसक हेतु में शकट तित्तिरी का उदाहरण सातव्य है ।' पुष-व्यंसक प्रयोग में तथा पुन: लूषक हेतु में मोदक का उदाहरण है।"
८६ 'अहिंसा, तप आदि गुणों से युक्त धर्म ही परम मंगल है',--यह प्रतिज्ञा वचन है। देव तथा लोकपूज्य पुरुष भी सुधर्म को नमस्कार करते हैं, यह हेतु है ।
___८६. इस सन्दर्भ में दृष्टांत है-अर्हत् भगवान् और अहंत भगवान् के अनेक अनगार शिष्य देवादिपूजित थे । इसका निश्चय कैसे किया गया ? वर्तमान के आधार पर अतीत जाना जाता है। वर्तमान में नरपति आदि विशिष्ट व्यक्ति भी भाव साधु को नमस्कार करते हैं।
८. उपनय--जैसे तीर्थंकरों को देव नमस्कार करते हैं वैसे ही राजा भी सुधर्म के प्रति नत होते हैं । इसलिए धर्म ही उत्कृष्ट मंगल है, यह निगमन वचन है ।
१. देखे-परि० ६, कथा सं० १३ । २.देखें-परि० ६, कथा सं०१६ । ३. देखें-परि० ६, कथा सं० १७ । ४. देखें-परि०६, कथा सं०१८ | ५. देखें-परि० ६, कथा सं० १९।
६. देखें-परि०६, कथा सं० २० । ७. देखें--परि ६, कथा २०२१ । ८. देखें परि० ६, कथा सं० २२ ।
९. देखें परि० ६, कथा सं० २३ । १०.देखें-परि०६ कथा सं. २४ ।