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नियुक्तिपंचक २२७।१. आधाकर्म, ओद्देशिक, पूतिकर्म, मिश्र, चरमप्राभृतिका और अध्यवपूरक-ये अविशोधिकोटि में तथा शेष विशोधिकोटि में हैं।
२२१. राग, मिथ्यात्व आदि की योजना से ये--तौ कोटियां' ही अठारह, सत्तावीस, पोपन, नब्बे और दो सौ सत्तर कोटियां हो जाती हैं।
२२११. नौ कोटि को राग, द्वेष-इन दो भेदों से गुणन करने पर (९४२) अठारह भेद होते हैं । मिथ्यात्व, अज्ञान और अविरति से गणन करने पर (९४३) सत्तावीस भेद होते हैं। सत्तावीस भेदों को राग, द्वेष इन दो से गुणन करने पर चौपन भेद होते हैं । नवकोटि को दसविध श्रमण धर्म से गणा करने पर नब्बे भेद होते हैं । तथा नन्थे भेदों को ज्ञान, दर्शन, चारित्र से गणन करने पर दो सौ सत्तर कोटियां होती है। छठा अध्ययन : महाचारकथा
२२२. तीसरे अध्ययन में जिस आधार का निर्देश दिया गया है, वहीं आचार यहां अन्यूनातिरिक्त रूप में इस महाचारकथा में बताया जाएगा।
२२३. धर्म के मुख्य दो प्रकार हैं- अपार धर्म और अनगार धर्म । अगार धर्म बारह प्रकार का है और अनगार धर्म दस प्रकार का है। इस प्रकार धर्म के बावीस प्रकार है।
२२४, पांच अणुव्रत, तीन गणवत और चार शिक्षाक्त-यह बारह प्रकार का गृहिधर्म या अगार धर्म है।
२२५. शान्ति, मार्दव, आर्जव, मुक्ति, तप, संयम, सत्य, शौच, आकिडचत्य और ब्रह्मचर्ययह दस प्रकार का यतिधर्म है, अनगार धर्म है।
२२६. यह धर्म तीर्थकर द्वारा उपदिष्ट है। 'अर्थ' शब्द के चार निक्षेप हैं-नामअर्थ, स्थापना अर्थ, द्रव्यअर्थ तथा भावअर्थ । संक्षेप में द्रव्यअर्थ छह प्रकार का है तथा विस्तार में उसके चौसठ भेद हैं।
२२७. तीर्थकरो तथा गणधरों ने छह प्रकार के अर्थ की प्रज्ञापना दी है-धान्य, रत्न, स्थावर, (भूमि, गृह आदि अचल सम्पत्ति) द्विपद, चतरपद तथा कुष्य-ताम्रकलश आदि उपकरण ।
२२८. धान्य के चौबीस, रत्न के चौबीस, स्थावर के तीन, विपद के दो, चतुष्पद के दस तथा कुष्य के अनेक प्रकार हैं। इन सब प्रकारों की मैं प्ररूपणा करूंगा। २२९,२३०. धान्य के चौबीस प्रकार१. यव (जी) ९. रालक
१७, मोठ १०. तिल
१२. राजमाष ३. शालि ११. मूंग ४. बीहि १२. उडद
२०. मसूर ५. साठी चावल १३. अलसी
२१ अरहर ६. कोद्रव १४. हरिमंय (काला चना)
२२. कुलथी ७. अणुक १५. तिपुटक (मालव देश में प्रसिद्ध धान्य) २३, धनिया ८. कांगणी १६. निष्पाय
२४. मटर