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उत्तराध्ययन नियुक्ति १२३-१४१. दर्शन परीषद में आचार्य आषाढ़भूति की १८०,१८१. विससाकरण की व्याख्या और प्रकार । कथा तथा अन्य अनेक कथानक ।
१५२. प्रयोगकरण के दो प्रकार । तीसरा अध्ययन
५०१,२. भारीर के अग और उपांग ।
१८३,१८४. जीवमूलप्रयोगकरण | एक शब्द के सात निक्षेप । १४३. संख्या शब्द के निक्षेप ।
१८५,१५६. उत्तर प्रयोगकरण के भेद ।
१८७. अंग शब्द के चार निक्षेप ।
अजीव प्रयोगकरण के भेद ।
१८७/१. १४५. द्रव्य अंग के प्रकार।
व्यकरण के भेव-प्रभेद । १४६-१४८, गन्ध दव्य के निर्माण की विविधता और
१८८. क्षेत्रकरण का स्वरूप। उनकी फलश्रुति । वासवदत्ता एवं उदयन का
१८९. कालकरण का स्वरूप ।
१९०-१९२/१. प्रकारान्तर से करण के ग्यारह भेद तथा उदाहरण । १४९,१५०. औषधि के अंग प्रतिपादन में अनेक रोगों को
प्रवकरण और चलकरण । हरने वाली गुटिका के निर्माण की विधि ।
१९३-९६. भावकरण के भेद-प्रभेद । १५१. मद्यांग के निर्माण की विधि।
१९७. अप्रमत्त रहने का निर्देश । १५२. आतोच अंगों के प्रकार ।
१९८,१९९. व्यदीप तथा भावदीप के भेद-प्रभेद । १५३,१५४, शरीर के अंग और उपशंग ।
पांचवा अध्ययन १५५. युद्धांग के प्रकार।
२००,२०१. काम और मरण शब्द के निक्षेप । १५६,१५७. भाव अंग के भेद-प्रभेद ।
२०२. द्रव्यमरण, भावमरण आदि का स्वरूप । १५८. शरीरांग के एकार्थक ।
२०३,२०४. प्रस्तुत अध्ययन के द्वारों का निर्देश । भावांग--संयम (दया) के एकार्थक । २०५-२०७. मरण के अवीचि आदि १७ भेदों के नाम। १६.. संसार में दुर्लभ क्या?
२०८. अवीचि के एकार्थक तथा उसके भेद । मानव जीवन की दुर्लभता के दस दृष्टांत ।
२०९. अवधिमरण का स्वरूप। १६२. मानव जीवन के दुर्लभ अंग।
२१०. बलम्मरण तथा वशार्स मरण का स्वरूप । १६३,१६४, धर्म श्रण में होने वाले व्याप ।
२११-२१३. अन्तःशल्यमरण का स्वरूप तथा उसकी १६५,१६६. मियादृष्टि और सम्यकदष्टि जीव का
गति । लक्षण। .
२१४,२११. तद्भवमरण का स्वरूप । १६७-१७२.निलव प्रकरण-निह्नवों के वाद, प्रवर्तक. २१६. बालमरण, पंडितमरण तथा मिथमरण का नगर तथा उनका अस्तित्व-काल।
स्वरूप। २१७.
छद्मस्थमरण और केवलिमरण के चौथा अध्ययन
अधिकारी। १७३. प्रमाद और अप्रमाद शब्द के चार-चार २१८, गुभ्रपुष्ठ और वहावस मरण का स्वरूप । निक्षेप।
२१९,२२०. भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और प्रायोपगमन मरण १७४. पांच प्रकार के प्रमाद और अप्रमाद ।
का प्रतिपादन। प्रमादाप्रमाद अध्ययन का निरुक्त।
२२१,२२२. एक समय में कितने मरण संभव ? असंस्कृत शब्द की नियुक्ति ।
२२३. एक समय में होने वाले मरण की संख्या। १७७. करण शब्द के छह निक्षेप ।
२२४. प्रशस्त और अप्रशस्त मरण कितनी बार ? १७८. द्रव्यकरण के दो प्रकार ।
२२५,२२६. 'कतिभाग' मरणद्वार का प्रतिपादन। १७९. नोसंज्ञाकरण के दो प्रकार-प्रयोगकरण
अध्ययन की नियुक्ति का उपसंहार। और विनसाकरण ।
२२८. प्रशस्त मरण के भक्तपरिशा आदि तीन भेद ।