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________________ १०८ उत्तराध्ययन नियुक्ति १२३-१४१. दर्शन परीषद में आचार्य आषाढ़भूति की १८०,१८१. विससाकरण की व्याख्या और प्रकार । कथा तथा अन्य अनेक कथानक । १५२. प्रयोगकरण के दो प्रकार । तीसरा अध्ययन ५०१,२. भारीर के अग और उपांग । १८३,१८४. जीवमूलप्रयोगकरण | एक शब्द के सात निक्षेप । १४३. संख्या शब्द के निक्षेप । १८५,१५६. उत्तर प्रयोगकरण के भेद । १८७. अंग शब्द के चार निक्षेप । अजीव प्रयोगकरण के भेद । १८७/१. १४५. द्रव्य अंग के प्रकार। व्यकरण के भेव-प्रभेद । १४६-१४८, गन्ध दव्य के निर्माण की विविधता और १८८. क्षेत्रकरण का स्वरूप। उनकी फलश्रुति । वासवदत्ता एवं उदयन का १८९. कालकरण का स्वरूप । १९०-१९२/१. प्रकारान्तर से करण के ग्यारह भेद तथा उदाहरण । १४९,१५०. औषधि के अंग प्रतिपादन में अनेक रोगों को प्रवकरण और चलकरण । हरने वाली गुटिका के निर्माण की विधि । १९३-९६. भावकरण के भेद-प्रभेद । १५१. मद्यांग के निर्माण की विधि। १९७. अप्रमत्त रहने का निर्देश । १५२. आतोच अंगों के प्रकार । १९८,१९९. व्यदीप तथा भावदीप के भेद-प्रभेद । १५३,१५४, शरीर के अंग और उपशंग । पांचवा अध्ययन १५५. युद्धांग के प्रकार। २००,२०१. काम और मरण शब्द के निक्षेप । १५६,१५७. भाव अंग के भेद-प्रभेद । २०२. द्रव्यमरण, भावमरण आदि का स्वरूप । १५८. शरीरांग के एकार्थक । २०३,२०४. प्रस्तुत अध्ययन के द्वारों का निर्देश । भावांग--संयम (दया) के एकार्थक । २०५-२०७. मरण के अवीचि आदि १७ भेदों के नाम। १६.. संसार में दुर्लभ क्या? २०८. अवीचि के एकार्थक तथा उसके भेद । मानव जीवन की दुर्लभता के दस दृष्टांत । २०९. अवधिमरण का स्वरूप। १६२. मानव जीवन के दुर्लभ अंग। २१०. बलम्मरण तथा वशार्स मरण का स्वरूप । १६३,१६४, धर्म श्रण में होने वाले व्याप । २११-२१३. अन्तःशल्यमरण का स्वरूप तथा उसकी १६५,१६६. मियादृष्टि और सम्यकदष्टि जीव का गति । लक्षण। . २१४,२११. तद्भवमरण का स्वरूप । १६७-१७२.निलव प्रकरण-निह्नवों के वाद, प्रवर्तक. २१६. बालमरण, पंडितमरण तथा मिथमरण का नगर तथा उनका अस्तित्व-काल। स्वरूप। २१७. छद्मस्थमरण और केवलिमरण के चौथा अध्ययन अधिकारी। १७३. प्रमाद और अप्रमाद शब्द के चार-चार २१८, गुभ्रपुष्ठ और वहावस मरण का स्वरूप । निक्षेप। २१९,२२०. भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और प्रायोपगमन मरण १७४. पांच प्रकार के प्रमाद और अप्रमाद । का प्रतिपादन। प्रमादाप्रमाद अध्ययन का निरुक्त। २२१,२२२. एक समय में कितने मरण संभव ? असंस्कृत शब्द की नियुक्ति । २२३. एक समय में होने वाले मरण की संख्या। १७७. करण शब्द के छह निक्षेप । २२४. प्रशस्त और अप्रशस्त मरण कितनी बार ? १७८. द्रव्यकरण के दो प्रकार । २२५,२२६. 'कतिभाग' मरणद्वार का प्रतिपादन। १७९. नोसंज्ञाकरण के दो प्रकार-प्रयोगकरण अध्ययन की नियुक्ति का उपसंहार। और विनसाकरण । २२८. प्रशस्त मरण के भक्तपरिशा आदि तीन भेद ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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