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नियुक्तिपंचक
३९-४१. परिमंडल आदि संस्थान पचाय और कट के दो-दो प्रकार के है। उत्कृष्टतः असंख्य प्रदेशावगाढ़ बाले ही होते हैं। जघन्यत: वृत्तसंस्थान का ओजःप्रवेशपसरवृत्त पांच प्रदेशावगाढ का होता है । युग्मप्रदेश प्रतरवृत्त १२ प्रदेशावगाह का होता है। ओजःप्रदेशपनवृत्त ७ प्रदेशावगाह का होता है । युग्मप्रदेश पनवृत्त ३२ प्रदेशावगाढ़ का होता है। इसी तरह व्यस संस्थान के क्रमश ३, ६, ३५ और ४ प्रदेशावगाढ हैं। चतस्र संस्थान के क्रमशः ९,४,२७ और ८ प्रदेशावमाह है। आयतओजःप्रदेश श्रेण्यायत संस्थान के ३,२, १५ और ६ प्रदेशावगाह है। आयप्त संस्थान के ओज:प्रदेश घनायत के क्रमशः ४५.१२ और ६ प्रदेणावगाद हैं। परिमंडल संस्थान के २० और ४० प्रदेशों का अवगा है।'
४१. स्निग्ध परमाणुओं का स्निग्ध के साथ तथा रूक्ष परमाणुओं का रूक्ष परमाणुओं के साथ अर्थात् सदृश परमाणुओं का एकीभाव तब होता है, जब वे दो गुण अधिक अथवा इससे अधिक गुण वाले हों।
स्निग्ध परमाणुओं का रुक्ष परमाणुओं के साथ अथवा रूक्ष परमाणुओं का स्निग्ध परमाणुओं के साथ अर्थात् विसदृश परमाणुओं का एकीभाव तब होता है, जब वे अजघन्य गुण वाले होते है, फिर चाहे वे विषम हों या सम ।
४२. धर्मास्तिकाय आदि पांचों के प्रदेशों का जो संयोग है, वह इतरेतरसंयोग है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय-इन तीनों का संयोग अनादि है और शेष दो-जीव और पुद्गल का संयोग आदि होता है।
४३. शन्द, रस, रूप, गंध, स्पर्श आदि पांच विषयों के साथ अभिप्रेत और अनभिप्रेत संयोग होता है । अभिप्रेत अनुकूल है और अनभिप्रेत प्रतिलोम है ।
४४. समस्त औषध द्रव्यों की संयुति, गन्ध-द्रव्यों की संयुति, भोजन विधि अर्थात् भोजन के विभिन्न भेद, राग-विधि, गीत-वादित्र विधि- ये सारे अनुलोम-अभिप्रेत संयोग हैं।
४५, अभिलाप संयोग तीन प्रकार का है-१. शब्द का अर्थ के साथ । (द्विक संयोग) २. अर्थ का अर्थ के साथ । ३. अक्षर का अक्षर के साथ। शब्द का अर्थ के साथ जो संयोग होता है, वह अव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से चार प्रकार का है। द्रव्य संयोग-घट शब्द का घट पदार्थ के साथ वाच्यवाचक संबंध । क्षेत्र संयोग-शब्द का आकाश के साथ अचगाह संबंध । काल संयोगसमय आदि शब्द का अर्तना लक्षण वाले काल के साथ संबंध । भावसंयोग-औदयिक आदि भाव का तत्सम अवस्था के साथ सम्बन्ध ।
४६. सम्बन्धनसंयोग तीन प्रकार का होता है सचित्त, अचित्त और मिश्र। सचित्तसम्बन्धनसंयोग के तीन प्रकार हैं-द्विपद-पुत्री आदि, चतुष्पद-गोमान आदि, अपदसंयोग-पनसबान आदि । अचित्तसम्बन्धनसंयोग-हिरण्य आदि का संयोग। मिश्रसम्बन्धनसंयोग-रथ में योजित तुरग आदि । इसके और भी अनेक प्रकार हैं।
४७. क्षेत्र, काल और भाव - इन तीनों के दो-दो प्रकार के सम्बन्धनसंयोग होते हैंआवेश (विशेष) और अनादेश (सामान्य)। १. विस्तार के लिए देखें श्री भिक्षु आगम विषय कोश' पृ. ६६४,६६५