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नियुक्तिपंचक
३३. पुष्पाणि य कुसुमाणि य, फुल्लाणि तहेव होंति पसवाणि । ___ सुमणाणि य सुहृमाणि, य 'पुप्फाणं होंति एगट्ठा" ।। १४ 'टुमाफिया यर अाहारएसणा-गोयरे तया उंछे। ___ मेस-जलोया' सप्पे, वणनख-'इसु-गोल-पुत्तुदए ।। ३५. कत्थइ पुच्छति सीसो, कहिंच पुट्ठा कहंति आयरिया। ___ सोसाणं तु हितठ्ठा, विपुलतरागं तु पुच्छाए । ३६. नाम ठवणाधम्मो, दग्वधम्मो य भावधम्मो य ।
एतेसिं नाणसं, वोच्छामि अहाणुपुवीए । ३७. दवं च 'अत्यिकायो, पयारधम्मो य भावधम्मो य।
दव्वस्स पज्जवा जे, ते धम्मा तस्स दश्वस्स ।। ३८. धम्मत्थिकायधम्मों, पयारधम्मो य विसयधम्मो य ।
लोइय-कुप्पादयणिय, लोगुत्तर लोगऽणेगविहो । ३९. गम्म-पसु-देस-रज्जे, पुरवर-गाम-गण-गोट्टिराईणं"।
सावज्जो उ कुतित्थियधम्मो न जिणेहि" तु पसत्थो ।
१. एगट्ठा पुष्फाणं होति णायचा (अ,ब), प्रस्तुत के एकार्थक हैं । अतः प्रस्तुत गापा नियुक्तिकार
गाया दोनों चूणियों में गाया रूप में उल्लिखित द्वारा ही रचित प्रतीत होती है। सभी हस्तनहीं है । पुष्प के एकार्थक बोनों चूर्णियों में प्रतियों में यह गाथा उपलब्ध है। मिलते हैं अत: पंडित मालवणियाजी का २. . फियं च (अच्), • फियाह (ब) । कहना है कि चूणि के एकार्थक शब्दों के ३, जलूगा (जिघू, हा)। आधार पर हरिभत ने उसे पधबद्ध कर दिया ४. उसु-पुत्त-गोलुदए (अचू) । हो, किन्तु ऐसा संभव नहीं लगता, क्योंकि ५. कहिति (अ, रा, अघू) 1 स्वयं हरिभद्र अपनी टीका मैं 'पुष्पंकाथिक- ६.
६. तु० सूनि १००! प्रतिपावनायाह ऐसा नहीं कहते तथा चूर्णि में ७. कायप्पयार० (हा)। तो मात्र तीन-चार एकार्थक शब्द हैं, गाथा में ८. ०वपणे (हा)। कुछ अन्य एकार्थक भी है । प्रथम अध्ययन का ९. गुट्टि (अ, ब)। नाम 'दुमपुफिय' है। अतः द्रुम शब्द के १७. राईणं ति (जिचू) । एकार्थक के पश्चात् पुष्प के एकार्थक प्रासंगिक ११. जिणेसु (अचू) । है। उसके बाद ३७वीं गाथा में प्रथम अध्ययन