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दशवकालिक नियुक्ति २१७।१. पिंडो य एसणा या, दुपयं नामं तु तस्स नायट्वं ।
चउपनिवखेवेहि, परूवणा तस्स कायग्या' ।। २१८, नाम ठवणापिंडो, 'दब्वे भावे य होति णातव्यो ।
गुड'-ओदणाई दवे, भावे कोहादिया चउरो ।। २१८।१. पिडि संघाए जम्हा, ते उइया संया य संसारे ।
संघाययंति जीवं, कम्मेणट्टप्पगारेण दार।। २१८।२. दव्वेसणा उ तिविहा, सच्चित्ताचित्त-मीसदश्याणं ।
दुपय-चप्पय-अपया, नर-गय-करिसावण-दुमाण । २१८।३. भावेसणा उ दुविहा, पसत्थ-अपसत्थगा य नायब्वा ।
नाणाईण पसत्या, अपसत्था कोहमादीणं ।। २१८१४. भावस्सुवगारिता, एत्थं दब्वेसणाइ अहिगारो।
तीइ पुण अत्यजुत्ती, वत्तव्वा पिंडनिज्जुत्ती ।।
१. दोनों चूणियों में इस गाथा का कोई उस्लेख
नहीं है। टीका में यह नियुक्ति गाथा के क्रमांक में है। इस गापा से पूर्व टीका में भाष्य गाथा है। यह गाथा विषयवस्तु की दृष्टि से भाष्यगाथा के साथ जुड़ती है। यह नियुक्ति की प्रतीत नहीं होती। क्योंकि नियुक्तिकार प्रायः 'णाम उवणा' वाली गाथा से ही अध्ययन का प्रारंभ करते
६. २१८।१-४ तक की गाथाओं का दोनों
चूणियों में कोई उल्लेख नहीं है। गा. २१५ के बाद दोनों चूणिकारों ने मात्र इतना संकेत किया है कि-'नाम निप्फणे पिंडनिज्जुत्ती भाणियव्वा' (जिचू पृ. १६५) 'माम निष्फण्णे पिडनिज्जुत्ती सव्वा' (अचू पृ. ९८) ये चार गाथाएं नियुक्ति की हैं या नहीं, यह विवादास्पद है। अन्य अनेक स्थलों पर टीकाकार 'आह नियुक्तिकार: या आह भाष्यकार:' उल्लेख करते हैं वैसा इन गाथाओं के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता। हमने इन्हें निगा के क्रम में नहीं रखा है। ये भाष्यगाथा ज्यादा संगत लगती हैं। फिर भी इनके बारे में गहन चिन्तन की आवश्यकता है।
२. दवपिडो व भावपिंडो य (जिचू, अ, ब)। ३. गुल (अ, ब, अचू, रा)। ४. ओषणा म (अ, ब)। ५. पिंडनियुक्ति में कुछ अंतर के साथ निम्न
गाथा मिसती हैनाम उवणापिंडो,
दवे खेते म काल भावे य । एसो बसु पिंडस्म उ, निक्लेवो छब्बिहो होइ 11
(पिनि ५)