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नियुक्तिपंचक २१९. पिडेसणा य' सव्वा, संखेवेणोयरइ नवसु कोडीसु ।
न हणइ न पयइ न किणह, कारावण-अणुमईहिं नव ।। २१९।१. सा नवहा दुह कीरइ, उग्गमकोडी विसोहिकोडी य ।
छसु पकना औपर, कीय-निगमो विसोही ॥ २२०. कोडोकरणं दुविह, उग्गमकोडी विसोधिकोडी य ।
उगमकोडी छक्क, विसोधिकोडी 'भवे सेसा ॥ २२०११. कम्मुसिय चरिम तिग, पूतियं मीस चरिम पाहुडिया ।
अझोयर अविसोही, विसोहिकोडी भवे सेसा ।। २२१. नव 'चेवढारसगं, सत्तावीसं तहेव चउपपणा ।
नउती दो चेव 'सता उ सत्तरा होंति कोडीणं ।। २२११. रागाई मिच्छाई, रागाई समणधम्म नाणाई। ___ नव नव सत्तावीसा, नव नउईए य गुणगारा ।।
“पिडेसणानिनुत्ती समत्ता १.उ (ब,ब)।
५. इस गाथा का भी चूणि में कोई उल्लेख नहीं २. करावण (ब,रा)।
है। यह गाथा २२० की व्याख्या में लिखी इस गाथा का भावार्थ दोनों चणियों में गई है ऐसा संभव लगता है अतः यह भाष्यमिलता है। ऐसा प्रतीत होता है कि गा. गाथा होनी चाहिए। २१८ के बाद यह गाथा नियुक्ति की होनी ६.० सगा सप्तावीसा (हा)। चाहिए क्योंकि चूणि में २१८ की गाथा के ७. नई (हा,अ,ब,रा)। बाव केवल इसी गाथा की संक्षिप्त व्याख्या ८. सया सत्तरिया हंति (हा), सया सप्तरी होति मिलती है। हमने इसको नियुक्तिगाथा के क्रम में संलग्न किया है।
९. इस गाथा की व्याख्या टीका और चणि ३. इस गाथा का चणि में कोई उल्लेख नहीं है। दोनों में नहीं मिलती। मृद्रित टीका के
इस गाथा को हमने निगा के क्रम में सम्मि- टिप्पण में 'प्रतिभातीयं प्रक्षिप्तप्राया ऐसा लित नहीं किया है। क्योंकि अगली माथा में उल्लेख है फिर भी संपादक ने इसको नियुक्ति
भी इसी गाथा का भाव प्रतिपादित हुआ है। माथा के क्रमांक में जोड़ा है। यह माथा ४. अणेगविहा (अ.रा)।
हस्त आदशों में मिलती है किन्तु किसी भी इस गाथा की उत्थानिका में स्थविर व्याख्याकार ने इसको व्याख्यायित नहीं किया अगस्स्यसिंह ने 'एत्य निष्णुसिगाहा' का है, इसलिए हमने इसको नियुक्तिगाथा के उल्लेख किया है। किंतु आचार्य हरिभद्र ने क्रम में संलग्न नहीं किया है। आदर्शों में तो इसे स्पष्ट रूप से भाष्य गाथा मानते हुए लिपिकारों द्वारा नियुक्तिगाथा के साथ लिखा है-'एतदेव व्यापिण्यासुराह भाष्य- प्रसंगवश अन्य अनेक गाथाएं भी लिखी गयी कारः' (हाटी प १६२ मग्गा ६२) चालू हैं अत: उनको पूर्ण प्रामाणिक नहीं माना जा प्रसंग एवं पौर्वापर्य के औचित्य के आधार पर सकता। माह नियुक्ति की गाथा होनी चाहिए।