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निन । गुणश्रेणी-विकाः 10 के अतिरिक्त आचार्य उमास्वाति ने परीषह का प्रसंग भी उत्तराध्ययन नियक्ति से लिया है क्योंकि दोनों के वर्णन में बहुत संवादिता है। उमास्वादि ने संबर के
संग में परीष्ह क वर्णन किया है अत: वहां कितने परीषह किसमें पाए जाते हैं तथा किस कर्म के उदय से कौन से परीणह उदय में अते हैं. यह वर्णन अबासीक सा लगता है लेकिन नियुक्तिकार ने परीषह के बारे में लगभग ९ द्वारों से सर्वांगीण व्याख्या प्रस्तुत की है अतः वहां यह वर्णन प्रासंगिक लगता है।
__ नियुक्तिकार ने एक साथ एक जीव में उत्कृष्ट २० परीषह स्वीकार किए हैं। लेकिन तत्त्वार्थ सूत्रकार ने उत्कृष्टत: १९ परीषहों को स्वीकार किया है।' आई भद्रबाहु ने शीत और उष्ण तथा चर्या और निघद्या. को विरोधी मालकर एक समय में एक व्यक्ति में ... परीषह स्वीकार किए हैं किन्तु तत्वार्थ सूत्रकार ने शीत और उष्ण में एक तथा चर्या, निषद्या और शय्या इन तीनों में एक परीषह को एक समय में स्वीकार किया है अत: एक स्मय में १९ परीषह एक जीव में प्राप्त होते हैं। निथुक्तिगाथा के संवादी तत्त्वार्थ के सूत्र इस प्रकार हैंतस्वार्थ
उत्तराध्ययननियुक्ति ६. सूड्गसम्परायझर धीतरागयोश्चतुर्दश (९/१०) उदस य सुमरामम्मि छउमत्थवीयरगे (८०) २. एकादर जिने (९/११)
एकक.रस जिणम्मि (८०) ३ बादर।पर। सर्वे (९/१२)
बावीस बादरसम्पर!ये (८०) ४. ज्ञानावरणे प्रज्ञ ज्ञाने (९/१३)
पण्णःपुण्ण गपरीसह नागादरणन्मि हुति .... (७५) ५. दननहन्तराययोरदर्शनालाभ (९/१४) गा. ५.६८ ६ चरित्रमोहे नारन्यारसि-स्त्री निष्याकेश अरती अवेल इत्टी, निसीहिया जायण य अक्कोसे । ____ याचना-सत्कार -पुरस्कारा: (९/१५) सक्कारपुरझारे, चरित्तमोहम्मि सत्तेए।।७६ ।। ७. वेदनीये शेषाः (९/१६)
एक्कारस वेयणिजम्मि (गा. ७९) ८. एकादणे भाज्या युगपदैकोनविंशते: (९/१७) ग.८३ __ नियुक्ति में प्रयुक्त निक्षेप-पद्धति का अनुसरण भी परवर्ती आचार्यो ने कुछ समय तक किया लेकिन बाद के अचार्यों ने इसे इतना उपयोगी नहीं माना, जैसे--आचारांगनियुक्ति में कषाय के आठ निक्षेप किए गए हैं। वे ही आठ निक्षेप कषाय पाहुड़ में भी मिलते हैं। केवल उत्पत्ति कषाय के स्थान पर समुत्पत्ति कष्ाय का नाम मिलता है। कषायपाहुड़ के कर्ता ने ये निक्षेप आचारांगनियुक्ति से उद्धृत किए हैं, ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता है। पंच आचार,भाषा के भेद तथा विनय से संबंधित गाधाएं मूलाचार, भगवती आराधना, निशीथभाष्य आदि अनेक ग्रंथों में संक्रांत हुई हैं।
ठाणं संकलन प्रधान अंग आगम है अत: बहुर संभव है कि नियुक्ति-साहित्य के अनेक विषय कलान्तर रो उसमें प्रक्षिप्त हुए हैं। हमारे अभिमत के अनुसार अधा और हेतु के भेद-प्रभेद दशवैकालिक
१. उनि ८३। २ त. ६/६५७; एकादरी भाज्या युगपदनविशते. ।
६.पा. भाग १५.२५७; साओ ताव गिक्तिविश्वो णानकसाढवणासाओ दबकसाओ पच्चरकसाझे समप्पत्तियकताओं
आदेतकताओं रसफसाओ गावकसाओ।