________________
दशकालिक नियुक्ति
१४. मणगं पडुच्च सेज्जभवेण निजहिया दसज्झयणा ।
वेयालियाइ ठविया, तम्हा दसकालियं' नाम ।।दारं।। १५. आयप्पवायपुवा, निज्जूढा होई धम्मपण्णत्ती ।
कम्मप्पवायपुब्बा, पिंडस्स तु एसणा तिविधा ।। १६. सच्चप्पवायपुव्वा, निज्जढा होति 'वक्कसुद्धी उ" ।
अवसेसा निज्जूढा, नवमस्स उ ततियवत्थूतो।। १७. बितिओ वि य आदेसो, गणिपिडगातो दुवालसंगातो।
एवं किल निज्जूळ, मणगस्स अणुग्महट्टाए । १८. दुमपुफियादओ खलु, दस अज्झयणा सभिक्खुयं जाव ।
अहिंगारे वि य एत्तो, वोच्छं पत्तेयमेक्कक्के ॥दार।। १९. पढमे धम्मपसंसा, सो य इह जिणसासणे न अन्नत्य । ___ बितिए धितीए सक्का, काउं जे एस धम्मो त्ति ।। २०. ततिए आयारकहा उ, 'खुडिया आय-संजमोवाओं' |
तह जीबसंजमो वि य, होति चउत्थम्मि अज्झयणे ।। १. दसवेयालियं (स)।
गाथाओं का संकेत लिखना छूट गया हो या २. १३, १४ ये दोनों गाथाएं दोनों चूणियों में फिर जिन प्रतियों के आधार पर मुद्रित पूणि
संकेतित नहीं हैं किन्तु भावार्थ कथानक के का संपादन किया गया उसमें संकेत नहीं दिये रूप में है। पंडित दलसुखभाई के अनुसार ये गये हों। सभी हस्तपतियों में ये गाथाएं हरिभद्रकृत हैं क्योंकि इनमें शय्यंभव को मिलती हैं। नमस्कार किया गया है। किन्तु इन गाथाओं ३.० सुद्धि त्ति (ब)। के बारे में विचारणीय प्रश्न यह है कि यदि ४. फिर (हा, अचू) 1 ये गाथाएं स्वयं हरिभद्र द्वारा रचित होती तो ५. याइया (हा), ० याइओ (अ)। १३वीं गाथा के प्रारम्भ में वे स्वयं 'अवयवार्थ ६. इस गाघा में मा. १२ के 'जाति' द्वार का तु प्रतिद्वारं नियुक्तिकार एवं यथावसरे स्पष्टीकरण है अतः अचू और जिचू में वक्ष्यति' (हाटीप १०) तथा १४वीं गाचा के व्याख्यायित न होने पर भी इसे नियुक्तिगाथा प्रारंभ में 'चाह निर्मुक्तिकारः' का उल्लेख नहीं के क्रम में रखा है। (देखें-टिप्पण गा. १३, करते। इसके अतिरिक्त माथा १२ में जेण, जं, जत्तो और जावंति इन चार द्वारों सेः ७. इहेब जिणसासणम्मि त्ति (हर, अचू), हरिभद्र कचन की प्रतिज्ञा की है। इनमें जसो का ने टीका में जिनशासने धर्मो नान्यत्र' ऐसा उल्लेख करने वाली तीन गाथाएं १५,१६,१७ उल्लेख किया है। इसी आधार पर टीका और दोनों चूणियों में प्राप्त हैं, फिर 'जेण' का णि का मुद्रित पाठ स्वीकृत न कर आदशों निरूपण करने वाली गाथाओं को नियुक्ति का पाठ स्वीकृत किया है। गाषा क्यों नहीं मानी जाए? संभव है . इति पूरणार्थो निपातः (हाटी प. १३)। कथानक देने से गाथाओं का संकेत चूर्णिकारों ९. खुड्डियापार संजमो० (ब) । से नहीं किया हो अथवा लिपिकर्ताओं द्वारा