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नियुक्तिपंचक ९. नाम ठवणा दविए, खेत्ते काले तहेव भावे य ।
एसो खलु निक्लेवो, दसगस्स उ छविहो होति' ।। ९३१. बाला 'मंदा किड्डा', बला य पण्णा य हायणि पर्वचा।
पब्भार-मुम्मुही सायणी य, दसमी उ कालदसा ।। १०. दवे अद्ध-अहाउय, उवक्कमे देस-काल काले य ।
तह य पमाणे वण्णे, भावे पगयं तु भावेण" ।। ११. सामाइयअणुक्रमओ, वणे विगयपोरिसीए ऊ ।
निज्जूढ़ किल' सेज्जभवेण दसकालियं तेणं ।। १२. 'जेण व जं व पडच्चा', जत्तो जावंति जह य ते ठविया ।
सो तं च तओ ताणि य, तहा य कमसो कहेयव्यं ।।दार। १३. सेज्जभवं गणघरं, जिणपडिमादसणेण पडिबुद्ध ।
मणगपियरं दसकालियस्स निज्जूहगं वंदे ।।
१. यह गाथा अचू और जिजू में व्याख्यात है किन्तु अचू की भूमिका में इस गाथा को निर्यक्तिगाथा के क्रम में नहीं माना है।
(अचूभूमिका पृ.) २. किड्डा मंदा (रा, हा)। ३. टीका में यह गाथा निर्मुक्ति के क्रम में है किन्तु जिनदासचूणि में यह गाथा उद्धृत गाथा के रूप में उल्लिखित है। यह गाथा मूलतः 'तंदुलवेयालिय' प्रकीर्णक (मा. ३१) की है किंतु बाद में यह नियुक्तिगाधा के रूप में लिपिकारों या टीकाकार द्वारा जोड़ दी गई है, ऐसा प्रतीत होता है। हमने इसे निगा के कम में नहीं रखा है। द्र. दथुनि ३, पंकभा
२५२, निभा ३५४५, ठाणं १०।१५४ । ४. बादनि ६६० । ५.०पोरसीए (ब), सीओ (रा) 1
६. किर (हा)। ७. यह गाथा अचू में संकेतित नहीं है किन्तु टीकाकार इस गाथा के लिए 'चाह नियुक्तिकार:' लिखते हैं। इसके पूर्वापर संबंध को देखने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह गाथा अन्य आचार्यों द्वारा रची गई है क्योंकि इस गाथा की विषयवस्तु का ही पुनरावर्तन अगली गाथाओं में हुआ है।
इस माथा के बाद जिनदासवृत चणि में 'इमाओ निरुत्तिगाहामो चउरो अज्झप्पस्साणयणं"", अहिगम्मन्ति व", जह दीवा', अटुविहं"इनका उल्लेख है लेकिन हस्तप्रतियों में ये गाथाएं आगे (गा २६,२७,२८,३०) इस क्रम में मिलती हैं। ६. जेणेव च पटुच्च (जिचू) ।