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नियुक्तिपंचक गया।” चम्पा नगरी का बणिक पुत्र पालित नौकाओं में माल भरकर पिहुण्ड नगर पहुंचा। विदेशी लोग भारत में रत्न खरीदने आते थे। एक बार एक व्यापारी के पुत्रों ने विदेशी व्यापारियों को सारे रत्न बेय दिए । अन्य देशों से आए माल की कड़ी जांच की जाती थी।
कपड़ों के लिए पक्का रंग जलौक के माध्यम से तैयार किया जाता था। जलौक को जीवित व्यक्ति के शरीर पर छोड़ दिया जाता। वह उसका रक्त चूसकर लो रंग बनाती. बह कपड़े आदि रंगने के काम आता था। सुगंधित द्रव्यों का चूर्ण बनाकर उसका प्रयोग वशीकरण एवं दूसरों को मोहित करने के लिए किया जाता था। मुकुन्द नामक वाद्य गंभीर स्वर के कारण वाद्यों में अपना विशिष्ट स्थान रखता था। सोलह सेर द्राक्षा, चार सेर धातकी के पुष्प और ढाई सेर इक्षु—इनको मिलाकर मद्य बनाया जाता था।
शिक्षा के लिए विद्यार्थी अन्य स्थानों पर भी जाते थे। उनके भोजन-पानी एवं आवास की व्यवस्था धनीं सेठ कर देते थे, जैसे--कोर ब्राहाम की व्यस्थ सेठ शालिभद्र ने की थी। शिक्षा पूर्ण कर लौटे विद्यार्थी का राजा सार्वजनिक सम्मान करता था। नगर को पताकाओं से सजाकर उसे हाथी पर बिठाकर ससम्मान घर पहुंचाया जाता तथा अनेक प्रकार के उपहार भी दिए जाते थे। सोमदेव ब्राह्मण के पुत्र रक्षित का ऐसा ही राजकीय सम्मान किया गया ।
उत्तराध्ययननियुक्ति में ऋषभपुर, राजगृह और पाटलिपुत्र नगर की उत्पत्ति का संकेत मिलता है। इसी प्रकारादिशपुर नगर के उत्त्पत्ति के कथानक का संकेत भी नियुक्तिकार ने दिया है। राजतंत्र होने से राजभय के कारण मुनि की आपार-परम्परा में राजा की आज्ञा को आपवादिक कारण में रखा जाता था। राजा यदि किसी व्यक्ति की सरलता से प्रसन्न होता तो करोड़ों रुपये देने के लिए तैयार हो जाता।" राजकुमार यदि दुर्व्यसनों में फंस जाता तो सर्वगुणसम्पन्न होते हुए भी राजा उसे देशनिकाला दे देता। उज्जैनी का राजपुत्र मूलदेव कला-मर्मज्ञ होते हुए भी जुए के व्यसन से आक्रान्त था अत: राजा ने उसे देशनिकाला दे दिया। राजा लोग वेश्याओं को अंत:पुर में रख लेते थे। मथुरा के राजा ने कालः नामक वेश्या को अपने अंत पुर में रखा, जिससे कालवैशिक नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। गुप्तचर निरपराध मुनियों को भी चोर समझ कर उन्हें दंडित कर देते थे। उस समय राज्य की ओर से अठारह प्रकार के कर प्रचलित थे। नियुक्तिकार ने युद्ध के लिए केवल यान, कवच, प्रहरण और युद्ध-कौशल को ही आवश्यक नहीं माना, इसके अतिरिक्त नीति, दक्षता, प्रवृत्ति और शरीर का
१. उत्सुटी म. ६४। २. उनि २६ । ३. शांटी ५.१४७। ४ उसुटी ५.६५। ५ दन १०८ चू. प. १५१ ! ६. उनि १४७, १४८। ७ उनि १५२. उशटी ग. १४३ । ८. उनि १५१। ९ उनि २४६, उसुटी प. १२४ ।
१०. उझुटी ५.२३ ११. उनि १०१। १२. उनि ९६। १३. दनि ७३। १४. उनि २५०। १५. उसुटी प. ५९॥ १६. उसुटी प. १२० । १७ उनि १०८. ११७ । १८ उशांटी प. ६०५।