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मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर (सातबीस मंदिर) चित्तौड़गढ़ किला
चित्तौड़गढ़ जयपुर से 325 व उदयपुर से 110 किलोमीटर दूर है। यह राजस्थान का एक जिला मुख्यालय है। जिला मुख्यालय राजस्थान की राजधानी जयपुर व उदयपुर से रेल्वे व बस से जुड़ा है तथा उदयपुर तक वायुयान की भी सुविधा है। चित्तौड़गढ़ रेल्वे स्टेशन से 6
किलोमीटर दूर पहाड़ी के ऊपर स्थित है। चित्तौड़गढ़ (चित्रकूट ) प्राचीनकाल में मेवाड़ की राजधानी रही है जो पूर्व में मझिमिका के नाम से जानी जाती है जिसका विस्तृत वर्णन इसी पुस्तक के मेवाड़-चित्तौड़ जैन धर्म के शीर्षक में वर्णित है।पुनःसंक्षेप में वर्णन इस प्रकार है
___ यह किला चौथी शताब्दी में मौर्यवंशी राजा चित्रांगन मौर्य द्वारा निर्मित है, इसीलिये इसका नाम चित्तौड़ रखा। आठवीं शताब्दी में गुहलवंशी राजा महेन्द्र (बाप्पारावल) ने इस पर विजय प्राप्त कर अपने अधिकार में लिया। बाद में 12वीं शताब्दी में सिद्धराज जयसिह के अधिकार में आ गया। यह अधिकार राजा कुमारपाल का रहा। कुमारपाल द्वारा अपने क्षेत्र के प्राणों की रक्षा करने वाले आलिक कुम्हार के नाम सात सौ ग्रामों का पट्टा दिया जिसमें चित्रकूट भी सम्मिलित होने का उल्लेख है, बाद में राजा कुमारपाल के भतीजे अजयपाल को गुहिलवंशी राजा समरसिंह ने हराकर पुनः वि. सं. 1231 में अपने अधिकार में लिया । गुहिलवंशी राजा की एक शाखा सिसोदिया भी थी, चित्तौड़ उनके अधिकार में रहा।
इस आदिनाथ भगवान के मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी का उल्लेख है। लेकिन यह सही प्रतीत नहीं होता क्योंकि यह सर्वेक्षण जानकार सूत्रों के आधार पर ही था जबकि – वि.सं. 1335 फाल्गुन 5 के दिन युवराज अमरसिंह की सानिध्य में इस मंदिर का ध्वजारोहण होने का उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार महाराजा समरसिंह ने सं. 1353 में ग्यारह जिन प्रतिमाएं प्रतिष्ठित करने का उल्लेख है।
_ वि.सं. 1566 में जयदेव रचित तीर्थमाला में वि. सं. 1573 में हर्ष प्रमोद के शिष्य गयंदी द्वारा रचित तीर्थमाला में यहां (चित्तौड़) पर 32 जिन मंदिर (विभिन्न गच्छों के)
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