________________
ऐतिहासिक-काल
वि० सं० १७६ ( ई० स० ११८ ) के क़रीब गुजरात, काठियावाड़, कच्छ आदि प्रदेशों पर पश्चिमी क्षत्रप नहपान का राज्य था । इससे मारवाड़ के दक्षिणी भाग का भी इसके अधिकार में होना पाया जाता है । इसके जामाता ऋषभदत्त ( उषवदात ) ने पुष्कर में जाकर बहुतसा दान दिया था । वि० सं० १-१ के कुछ काल बादद्दी नहपान का राज्य आंध्रवंशी गौतमीपुत्र शातकर्णी ने छीन लिया था । इसपर मारवाड़ का दक्षिणी भाग भी उसके अधिकार में चला गया होगा ।
शक संवत् ७२ (वि० सं० २०७ ) के जूनागढ़ से मिले पश्चिमी क्षत्रप रुद्रदाना प्रथम के लेख से पता चलता है कि श्वभ्र ( उत्तरी गुजरात ), मरु ( मारवाड़ ), कच्छ और सिंधु (सिंध ) प्रदेशों पर उसका अधिकार हो गया था ।
1
समुद्रगुप्त का पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय था । इसको विक्रमादित्य भी कहते थे । इसने वि० सं० ४४५ के क़रीब पश्चिमी क्षत्रपों के राज्य की समाप्ति कर अपने राज्य का और भी विस्तार किया था । गुप्त संवत् २१८ ( वि० सं० ६७४ ) का एक शिलालेख मारवाड़ के गोट और मांगलोद की सीमा पर के दधिमती देवी के मंदिर से मिला है । ये दोनों गाँव नागोर से २४ मील उत्तर - पश्चिम में हैं । मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मंडोर के विशीर्ण-दुर्ग में एक तोरण के दो स्तंभ खड़े हैं । उन पर श्रीकृष्ण की बाललीलाएँ खुदी हैं । इनमें के एक स्तंभ पर गुप्त लिपि का लेख था, जो अब क़रीब क़रीब सारा ही नष्ट हो गया है । इन सब बातों से सिद्ध होता है कि इस देश के कुछ भागों पर गुप्त राजाओं का अधिकार भी रहा होगा ।
वि० सं० ५२७ ( ई० स० ४७० ) के क़रीब हूणों ने स्कंदगुप्त के राज्य पर ( दुबारा ) चढ़ाई की। इससे गुप्त राज्य की नीव हिल गई और उसके पश्चिमी प्रांत पर हूणों का अधिकार हो गया । सम्भवतः उस समय मारवाड़ का कुछ भाग भी अवश्य ही उनके अधिकार में चला गया होगा ।
१. एपिग्राफिया इंडिका, भाग ८, पृ० ३६
२. वि० सं० ५४६ ( ई० स० ४८४ ) में हूणों ने पर्शिया ( ईरान) के राजा फ़ीरोज़ को मारकर वहां का खजाना लूट लिया था। इसी से वहां के ससेनियन सिक्कों का भारत मै प्रवेश हुआ। ये सिक्के अठन्नी के बराबर होते थे और इन पर सीधी तरफ़ राजा का मस्तक और उलटी तरफ अनिकुण्ड बना रहता था, जिसके दोनों तरफ़ आदमी खड़े होते थे । ये आजकल के सिक्कों से बहुत पतले होते थे । ये सिक्के हूणों का राज्य नष्ट हो जाने पर भी गुजरात, मालवा और राजपूताने में विक्रम संवत् की बारहवीं शताब्दी के
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
५
www.umaragyanbhandar.com