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मारवाड़ का इतिहास
पहले मारवाड़ का उत्तरी भाग और उसके आगे का बीकानेर का सारा प्रदेश जांगल देश कहाता था और उसकी राजधानी अहिच्छत्रपुर ( नागोर ? ) थी । महाभारत से पता चलता है कि उस समय वहां पर कौरवों का अधिकार था ।
ऐतिहासिक काल
इसके बाद से मौर्यवंशी नरेश चंद्रगुप्त के पूर्व तक का इस देश का विशेष वृत्तांत नहीं मिलता है । परंतु इस राजा के अंतिम समय मौर्य राज्य का विस्तार नर्मदा से अफ़गानिस्तान तक फैल गया था । इसका पौत्र अशोक भी बड़ा प्रतापी राजा था । उसने सुदूर दक्षिण को छोड़ करीब-करीब सारे हिंदुस्तान, अफगानिस्तान और बलूचिस्तान पर अधिकार कर लिया था । जयपुर - राज्य के वैराट ( विराट ) गाँव से उसका एक स्तंभलेख मिला है । इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि मौर्य सम्राट् चंद्रगुप्त और उसके पौत्र अशोक के समय मारवाड़ भी मौर्य साम्राज्य का ही एक भाग रहा होगी ।
विक्रम सं० १७ से २-३ ( ईसवी स० ४० से २२६ ) तक भारत के पश्चिमी प्रदेशों पर कुशानवंशी राजाओं का अधिकार रहा था; क्योंकि इन्होंने बलख से आगे बढ़कर धीरे-धीरे काबुल, कंधार, फ़ारस, सिंध और राजपूताने का बहुतसा भाग दबा लिया था । इनमें कनिष्क विशेष प्रतापी राजा हुआ । समग्र उत्तर-पश्चिमी भारत और दक्षिण का विंध्य तक का प्रदेश इसके राज्य में था । इसलिये मारवाड़ के कुछ भाग पर इस वंश के नरेशों का अधिकार भी अवश्य रहा होगा ।
इससे अनुमान होता है कि 'मरु' और 'धन्व' दो भिन्न देश थे । यदि कोषकार अमरसिंह के लेखानुसार ये दोनों शब्द पर्यायवाची होते तो भागवत में इन दोनों शब्दों का प्रयोग इस प्रकार एकही स्थान पर न किया जाता। इससे प्रतीत होता है कि शायद मारवाड़ का दक्षिणी भाग 'धन्व' कहाता होगा |
१. “पैत्र्यं राज्यं महाराज ! कुरवस्ते सजाङ्गलाः ।”
( उद्योगपर्व, अध्याय ५४, श्लोक ७ )
( एक स्थान पर सिंधु से अरवली तक के भूभाग को शाल्वदेश के नाम से लिखा है ।)
२. मौयों के बाद उनका राज्य शुंगवंशी राजाओं के अधिकार में चला गया था । इस वंश के संस्थापक पुष्यमित्र के समय, वि० सं० से ६६ ( ई० स० से १५६ ) वर्ष पूर्व, ग्रीक नरेश मिनैंडर ने राजपूताने पर चढ़ाई की थी और उसकी सेना नगरी ( चित्तौड़ से ६ मील उत्तर ) तक जा पहुँची थी । नहीं कह सकते कि उस समय मारवाड़ मैं भी उसका प्रवेश हुआ था या नहीं ?
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