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मारवाड़ का इतिहास तक था । अबुलफजल ने इसकी लंबाई १०० कोम और चौड़ाई ६० कोम लिखी है
और अजमेर, जोधपुर, नागोर, सिरोही और बीकानेर, को इसके अंतर्गत माना है । उसने इसके प्रसिद्ध किलों के नाम इस प्रकार दिए हैं:-अजमेर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, उमरकोट और जैनगर ।
पौराणिक-काल
इसकी उत्पत्ति के विषय में वाल्मीकीय रामायण में इस प्रकार लिखा है
"लंका पर चढ़ाई करने की इच्छा से जब श्रीरामचंद्र समुद्र के किनारे पहुँचे, तब जल में मार्ग पाने की इच्छा से उन्होंने उसकी अभ्यर्थना प्रारंभ की । परन्तु समुद्र ने इस पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया। इससे क्रुद्ध हो राम ने समुद्र-जल को सुखा देने के लिये आग्नेयास्त्र का अनुसंधान किया । यह देख समुद्र तुब्ध हो उठा और उसने प्रकट होकर श्री रामचंद्र से उस अस्त्र को अपने दुमकुल्य-नामक उत्तरी भाग पर १. उत्तरेणावकाशोस्ति कश्चित्पुण्यतरो मम ।
द्रुमकुल्य इतिख्यातो लोके ख्यातो यथा भवान् ॥ २६ ॥ उग्रदर्शनकर्माणो बहवस्तत्र दस्यवः । अाभीरप्रमुखाः पापाः पिबन्ति सलिलं मम ॥ ३० ॥ तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पापकर्मभिः । अमोघः क्रियतां राम ! अयं तत्र शरोत्तमः ॥ ३१ ॥ तस्य तद्वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मनः । मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागरदर्शनात् ॥ ३२ ॥ तेन तन्मरुकान्तारं पृथिव्यां किल विश्रुतम् । निपातितः शरो यत्र वज्राशनिसमप्रभः ॥ ३३ ॥ ननाद च तदा तत्र वसुधा शल्यपीडिता । तस्माद्रणमुखात्तोयमुत्पपात रसातलात्
___॥ ३४॥ स बभूव तदापो व्रणइत्येव विश्रुतः ॥ ................... रामो दशरथात्मजः । वरं तस्मै ददौ विद्वान्मरवेऽमरविक्रमः ॥ ३७ ॥ पशव्यश्चाल्परोगश्च फलमूलरसायुतः । बहुस्नेही बहुक्षीरः सुगंधिर्विविधौषधः ॥ ३८ ॥ एवमेतैश्च संयुक्तो बहुभिः संयुतो मरुः ।। रामस्य वरदानाच शिवः पंथा बभूव ह ॥ ३६॥
(युद्धकांड, सर्ग २२)
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