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पौगणिक-काल चलाने की प्रार्थना की । उन्होंने भी उसके विनीत वचन सुन उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली । राम के आग्नेयास्त्र के प्रभाव से द्रुमकुल्य का जल सूख गया और वहां पर मरुदेश की उत्पत्ति हुई, तथा जहां पर वह तीर गिरा था वहां पर गढे से पानी निकलने लगा।"
रामायण की कथा से यह भी प्रकट होता है कि पहले उक्त स्थान पर आभीर आदि जंगली ( अनार्य ) जातियां रहती थीं । परंतु इस घटना के बाद से वहां का मार्ग निष्कंटक हो गया और आर्य लोग उधर आने-जाने और बसने लगे । अब तक मी मारवाड़ के अन्य प्रदेशों से उस प्रदेश में गाएं आदि ( दूध देनेवाले पशु ) अधिक होती हैं। ___मारवाड़ के पश्चिमी प्रदेश में अर्धपाषाणरूप में परिवर्तित शंख, सीप आदि के मिलने से भी पूर्वकाल में वहां पर समुद्र का होना सिद्ध होता है और प्राकृतिक कारणों से उसके हट जाने से वहां पर रेतीला पृथ्वी निकल आई है।
यह भी अनुमान होता है कि वहां पर किसी समय सतलज की एक धारा बहती थी । लोग उसे हाकड़ा नदी के नाम से पुकारते थे और उसके किनारों पर गन्ने की खेती करतेथे । परंतु अब उधर की पृथ्वी के कुछ ऊँची हो जाने के कारण उस धारा का पानी मुलतान की तरफ़ मुड़कर सिंधु में जा मिला है। मारवाड़-राज्य का एक प्रांत अब तक हाकड़ा के नाम से प्रसिद्ध है और 'वह पानी मुलतान गया' की एक कहावत भी यहाँ पर प्रचलित है ।
‘भागवत' से ज्ञात होता है कि कंस का वैर लेने के लिये उस के श्वशुर ( मगध के राजा) जरासंध ने सत्रह बार मथुरा पर विफल चढ़ाइयाँ की थीं । इसके बाद उक्त नगरी पर कालयवन का हमला हुआ । यह देख श्रीकृष्ण ने सोचा कि यदि इस मौके पर कहीं फिर जरासंध चढ़ आया तो यदु लोग निरर्थक ही मारे जायँगे । इसी से उन्होंने यदु लोगों को द्वारकापुरी की तरफ़ भेज दिया ।
इससे अनुमान होता है कि संभवतः इसी समय ( अर्थात्-महाभारत के समय के पूर्व ही ) से मारवाड़ का गुजरात की तरफ़ का दक्षिणी भाग आबाद होने लगा होगा । १. कुछ लोग बीलाड़ा नामक गांव की 'बाण गंगा' के कुण्ड को उक्त बाण के गिरने का स्थान
अनुमान करते हैं । परन्तु यह ठीक प्रतीत नहीं होता। २. श्रीमद्भागवत, दशमस्कंध, अध्याय ५० ।। ३. श्रीमद्भागवत में लिखा है-"मरुधन्वमतिक्रम्य सौवीराभीरयोः परान् ।”
( भागवत, स्कन्ध १, अ० १०, श्लो० ३५)
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